यह सब कुछ गहरी साजिश के अन्तर्गत हो रहा है। फिलहाल उस कालखंड को छोड़िए जब उजबेकिस्तान के 130 डाकुओं ने भारत के शासकों की आपसी फूट, स्वार्थ लिप्सा और मूर्खता के कारण रामकृष्ण की पावन धरती को अपने पावों तले रौंदा और करोड़ों भारतीयों का सिर काट कर उन की मीनारें खड़ी कर लीं। यहां की महिलाओं का शील हरण कर देसी गुलामों की फौज खड़ी कर ली थी। विदेशी आक्रांताओं की इन औलादो ने देश के टुकड़े कराने में क्या भूमिका अदा की और साम्प्रदानिक आधार पर बंटवारे के बाद भी कबालियों, रजाकारों की सन्ताने “भारत तेरे टुकड़े” होंगे, इंशा अल्लाह-इंशा अल्लाह के नारे लगा कर विभाजनकारी तत्वों को भड़काते हैं।
जो बंगाल के विभाजन, डायरेक्त एक्शन, मोपला विद्रोह, हैदराबाद नरसंहार में हुआ, उसी सोच और उसी तरीकों से गजवा-ए-हिन्द की राह बनाई जा रही है फिर चाहे वह सम्भल हो या फुलवारी शरीफ, पटना हो या हावड़ा, जयपुर, कानपुर, प्रयागराज, बड़ौदा, बंगलूरू, दिल्ली का जहांगीरपुरी, मेवात, नूंह हो अथवा कश्मीर घाटी- सब जगह एक मनोवृत्ति के निर्देशक, हमला करने और पिट जाने पर मर गये मर गये का हल्ला मचाने की कुटिलता और अपने पालतू दलालों तथा वोट बैंक के तलबगारों में चाबी भर कर एक साथ कोलाहल मचाने का हथकंडा । पहले किसी न किसी बहाने को तलाशा जाता है, तेजाब, पैट्रोल की बोतलें भरी जाती है। कट्टरपंथी जिहादी सोच के नौजवानों के चेहरों पर नकाब ढकी जाती है या कपड़ा लपेटा जाता है। पहली कतार में छोटे-छोटे नाबालिग बच्चों को आगे कर पीछे बुरकानशीं औरतों के हाथों में लाठी डंडा थमाते हैं, छतो पर पहले से ईंट पत्थर एकत्र किये जाते हैं। अलग-अलग ग्रुप अलग तरीके से एक साथ धावा बोलता है। श्रीनगर के लाल चौक या पुलवामा की गलियों से लेकर संभल सब एक ही तरीका, एक ही पैटर्न है।
ये योजनाबद्ध तरीके से हमला करते हैं और जिहादी तथा तास्सुबी वोटों की लामबंदी करने वाले भोपू बजाना शुरू कर देते हैं। एक नेता ने कैमरे पर आकर कहा- पुलिस बूथ लुटेगी तो ऐसे ही पिटेगी, दूसरा बोला- अत्याचारी सरकार ऐसे ही जायगी। जुल्म ख़त्म होगा। 40 हजार हिन्दूमों की हैदराबाद रियासत में नरसंहार कराने वालों का वारिस मीडिया के सामने उछल-उछल कर बोला। फायरिंग करने वालों और व पत्थरबाज़ों की मौत पर उसने कहा- पुलिस पर हत्या का मुकदमा चलाओ। एक मौलाना देवबंद से बोला- इन्होंने जामा मस्जिद के सामने जय श्रीराम क्यूं कहा? मौलाना को अल्लाहो अकबर के नारे सुनाई नहीं दिये, दंगाइयों के हाथों में लाठी डंडे और पत्थर नहीं दिखाई दिये !
न राहुल को, न खड़गे को, न अखिलेश को लपटों में जलते वाहन दिखाई दिए न ही डिप्टी कलेक्टर, एस.पी., सी.ओ. या एस.पी. के पी. आरओ और 20 पुलिसजनों की चोटें तथा बहता खून दिखाई दिया।

यह सम्भल का स्थानीय झगड़ा नहीं, देश के विरुद्ध चल रही भयंकर साजिश का छोटा सा रिहर्सल मात्र है। गला फाड़-फाड़कर चिल्लाने वाले बंधुवा नेता क्या बता सकते हैं कि संविधान और कानून की रट लगान वाले चंदौसी के सिविल जज के फैसले की हुक्मउदूली कर हिंसा, तोड़फोड़, आगजनीं पर क्यूं उतारू हुए? सफेद भूठ बोलने और तरह-तरह की बहाने बाजी कर देश को गुमराह करने के अलावा उनके पास कहने को कुछ नहीं।
पुलिस गुंडों व हमलावरों को न रोकती तो वे सबसे पहले कोर्ट कमिश्नर रमेश सिंह राधव और उनकी सर्वे टीम के लोगों की हत्या करने पर उतारू थे। ओवैसी हैदराबाद में बैठा-बैठा कह रहा था- सम्भल में युद्ध छिड़ गया है और जियाउर्रहमान वर्क तथा सुहेल इकवाल आग में तेल छिड़क रहा था।
देश के रखवालों, राष्ट्रप्रेमियों, संकटमोचकों से कहेंगे कि पानी सर से गुजर ने से पहले वे सावधान हो और देश की अखंडता, सम्प्रभुता, एकता व शान्ति भंग करने वाले गद्दारों को वह सजा देने को तत्पर हो जो देशद्रोहियों को दी जाती है। जो लोग इरादतन हिंसा भड़काते हैं, बलवा-दंगा करते हैं, उनके विरुद्ध राष्ट्रद्रोही जैसा व्यावहार हो। चुनाव लड़ने, मतदान करने, सरकारी सुविधाओं का लाभ देना बंद किया जाए। इनके पासपोर्ट, वीज़ा, राशन व आयुष्मान कार्ड जब्त होने चाहिए। यह ठीक है कि बदमाशों ने मजबूत किलेबदी की हुई है और धार्मिक फैला कर हमदर्दी की फौज खड़ी कर ली है लेकिन एक न एक दिन यह करना ही पड़ेगा। शायद यह समय नजदीक आ गया है।
गोविन्द वर्मा