सनातन कभी विष नहीं फैलाता…जयपुर में बोले उपराष्ट्रपति धनखड़

उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने धर्म परिवर्तन को लेकर बड़ी चिंता जताई है. गुरुवार (26 सितंबर, 2024) को उन्होंने राजस्थान की राजधानी जयपुर में कहा कि सनातन कभी जहर नहीं फैलाता है. यह तो खुद शक्तियों का संचार करता है. देश में एक संकेत दिया गया है, जो कि बहुत खतरनाक है और यह राजनीति को भी बदलने वाला है. यह नीतिगत तरीके से हो रहा है, संस्थागत तरीके से हो रहा है और सुनियोजित षड्यंत्र के तरीके से हो रहा है. यह धर्म परिवर्तन है!

हिंदू आध्यात्मिक और सेवा मेला के उद्घाटन भाषण के दौरान जगदीप धनखड़ ने दावा किया, “फिलहाल देश में शुगर-कोटेड फिलॉसफी बेची जा रही है. वे समाज के कमजोर वर्गों को निशाना बनाते हैं. वे हमारे आदिवासी लोगों में अधिक घुसपैठ करते हैं. लालच देते हैं. हम बहुत ही पीड़ादायक तरीके से एक नीति के रूप में धार्मिक धर्मांतरण को देख रहे हैं और यह हमारे मूल्यों और संवैधानिक परिसर के विपरीत है. जरूरत है, तेजी से काम करने की ताकि ऐसी भयावह ताकतों को नकारा जा सके. हमें सचेत रहना पड़ेगा और तीव्र गति से काम करना पड़ेगा.”

‘भारत को खंडित कर रहे लोग’

उप-राष्ट्रपति ने कहा, “भारत को खंडित करने के लिए जो लोग आज सक्रिय हैं, उनका आप अंदाजा नहीं लगा सकते. जब मैं सामने राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति को देखता हूं और पड़ोसी देश में कुछ होता है तो एक व्यक्ति जो संवैधानिक पद पर रहा है, केंद्र में मंत्री रहा है, वकालत के पेशे में वरिष्ठ अधिवक्ता है, एक नैरेटिव चलाता है, कहता है कि यह भारत में भी हो सकता है. क्या हमारा प्रजातंत्र कमजोर है?”

‘संवैधानिक सिद्धांतों के है विपरीत’

उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, “हम एक दर्दनाक धार्मिक रूपांतरण देख रहे हैं और यह हमारे मूल्यों और संवैधानिक सिद्धांतों  के विपरीत है. भारतीय संविधान की प्रस्तावना सनातन धर्म के सार को दर्शाती है. हिंदू धर्म सच्चे अर्थ में समावेशी है; यह पृथ्वी पर सभी जीवों का ध्यान रखता है. दूसरों की सेवा में जीवन बिताना हमारी भारतीय संस्कृति का सार और मूलमंत्र है. आज भी सेवा का भाव हिंदू समाज में प्रबल रूप से विद्यमान है. भारतीय समाज संकट में दूसरों का सहारा बनता है, अपने तनाव की परवाह किए बिना.”

उन्होंने आगे कहा, “इन दिनों राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न विषयों की काफी चर्चा हो रही है. काफी सारी रिपोर्ट आ रही हैं. वे अध्ययन करते हैं. ज्यादातर कोशिश करते हैं कि हम में कुछ कमी निकाल लें, कि भारत वह देश है जहां दस में से चार लोग लोकअर्पित कार्यों में व्यस्त रहते हैं, दूसरों की सेवा करते हैं.”

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