वर्ष 2024 के पिछले मास में यानी दिसंबर महीने की पहली तारीख में भारत की जनसंख्या स्थिति पर दो चर्चित लोगों के बयान आये। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत ने शाहपुर में मुजफ्फरनगर जनपद जाट महासभा के सम्मेलन में कहा कि जाट समाज की घटती जनसंख्या चिन्ता का विषय है। अभी सतर्क नहीं हुए तो पांच-सात साल में हालात और भी खराब हो जायेंगे।
पहली दिसंबर को ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवन ने भारत की जनसंख्या स्थिति पर एक बयान नागपुर में दिया। डॉ. भागवत ने कहा कि प्रजनन दर 2.1 प्रतिशत से नीचे गिरी तो हमारा समाज विलुप्त हो जायेगा। इस खतरे का सामना करने के लिये दम्पत्तियों को 2 के बजाय 3 बच्चे पैदा करने चाहिये।
इस प्रकार नरेश टिकैत तथा मोहन भागवत दोनों ही जन्म दर वृद्धि की बात कह रहे हैं। अराजनीतिक रह कर राजनीति की चौपड़ पर राजनीति के पांसे फेकने में माहिर इन नेताओं में तीसरे नेता राकेश टिकैत ने जनसंख्या पर अपने ही ढंग से टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि मोहन भागवत से मिलूंगा तो उनसे पूछूंगा कि 5-5 बच्चे पैदा करवाओगे तो क्या जनसंख्या विस्फोट नहीं होगा? लोग क्या खायेंगे, कहाँ रहेंगे, क्या करेंगे, जमीन तो सारी अदानी-अंबानी की हो जायेगी। वाकई जटिल समस्या है।
तो फिर जाट महासभा में भाकियू अध्यक्ष आबादी बढ़ाने की बात क्यूं कहते हैं? जिस समाज पर 5-7 बरस में संकट आने की बात वे कह रहे हैं, उस में कौन है? क्या उस समाज में सिर्फ जाट हैं? नरेश टिकैत का तात्पर्य क्या सिर्फ जाट समाज से है? जाटों में तो मूले जाट (मुस्लिम) व सिख जट भी है। एक भाई समाज की आबादी बढ़ाने की बात करता है तो दूसरा जनसंख्या विस्फोट की बात कह कर मोहन भागवत की आलोचना करता है। यदि जाट समाज से उनका तात्पर्य है तो हिन्दू व मुस्लिम जाटों को किसी एक भाई की जनसंख्या नीति पर अमल करना होगा। या तो जनसंख्या बढ़ाने पर जोर दें या जनसंख्या नियंत्रण पर। हिन्दू जाट व मुस्लिम जाट के लिए अलग अलग जनसंख्या नीति का क्या औचित्य है? जाति व मजहब के आधार पर जनसंख्या नीति क्या राष्ट्र के व्यापक हित में है? जनसंख्या पर भाषण झाड़ने वाले इसका जवाब नहीं देंगे।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’