यह एक संयोग था कि 26 अगस्त, 2024 को पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा (संस्थापक संपादक ‘देहात’) की 39वीं पुण्यतिथि भी थी, और भगवान श्रीकृष्ण की जन्मतिथि भी थी। पिताश्री महर्षि दयानन्द जी के अनुयायी थे और मूर्तिपूजा तथा धार्मिक आडम्बरों से दूर रहते थे। हमारे मकान के ठीक सामने नगर के प्रतिष्ठित वैश्य परिवार, समाजसेवी कृष्ण गोपाल अग्रवाल के पूर्वजों द्वारा स्थापित प्राचीन शिव मन्दिर है। वे कभी पूजा करने उस मंदिर में नहीं गये तथापि मन्दिर के पुजारी फक्कड़ बाबा व ऋषि जी (ग्राम धौलरा निवासी) की सेवा शुश्रूषा में कोई कसर नहीं करते थे। पुजारियों के लिए प्रत्येक मौसम के नये कपड़े, कम्बल, रिजाई आदि उपलब्ध कराते थे। घर पर यज्ञ (हवन) कराने के अतिरिक्त कोई व्रत, उपवास नहीं रखते थे।
किन्तु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर उपवास अवश्य रखते थे और अर्द्धरात्रि को भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म का शंख बजने पर मंदिर जाकर प्रसाद व चरणामृत ग्रहण करने के उपरान्त भोजन करते थे। जीवन पर्यन्त उनका यही क्रम चला।
एक बार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर मैंने तथा परिवार के सदस्यों ने पिताश्री से पूछा- ‘आप कभी मंदिर नहीं जाते, कोई व्रत नहीं रखते तो जन्माष्टमी का व्रत क्यों रखते हैं और मन्दिर जा कर ऋषि जी से प्रसाद क्यों ग्रहण करते हैं ?’
उन्होंने उत्तर दिया- ‘श्रीकृष्ण महान कर्मयोगी थे। वे भारत की आत्मा हैं। उनके बिना हमारा कोई वजूद नहीं। जब तक हमारे मन में श्रीकृष्ण बसे हैं, भारत का और भारत की सनातन संस्कृति का अस्तित्व रहेगा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर उपवास रख कर मैं अपनी आत्मा को मांजता हूँ और महायोगी कृष्ण की लीलाओं का ध्यान करता हूँ।’
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर एक बार उन्होंने पारिवारिक सदस्यों को बुला कर कहा- ‘क्या मन्दिरों के दर्शन नहीं करोगे?’ परिवार की कार रमेश नामक एक वाल्मीकि युवक चलाता था। उसे बुला कर कहा- ‘सबको मंदिरों के दर्शन करा के लाओ। मैं भी चलूंगा।’ हम सभी को आश्चर्य हुआ। गाड़ी में बैठे और कहा कि कार को सहारनपुर अड्डे की ओर ले चलो। कुष्ठ आश्रम पर जा कर गाड़ी रुकवाई। वहां मंदिर सुन्दरता से सजा था। शिवालय में गए। आश्रम को कुछ धन अर्पित किया और गाड़ी शहर की ओर मुड़वाई। अस्पताल के सामने आकर गाड़ी रुकवाई और घर चल दिए। हम सब से कहा कि गांधी कॉलोनी, नई मंडी, नुमाइश कैम्प तथा शहर के सभी मंदिरों के दर्शन कर के आना।
आज के श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर उनकी खूब याद आई। वे हमारे पालनकर्ता और मार्गदर्शक थे। शत-शत नमन् !
गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’