मुज़फ्फरनगर के कलमकारों का रचना-संसार !

आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़ी सपना अग्रवाल के काव्य-संग्रह ‘बासुरी, जो है मुझसा कोई’ का विमोचन डॉ सम्राट सुधा द्वारा उल्लासपूर्ण वातावरण में गांधी कॉलोनी (मुज़फ्फरनगर) के एक बैंकेट हॉल में संपन्न हुआ। सपना जी को शुभ कामनायें व ढेर सारी बधाइयां !

विडम्बना है कि मुज़फ्फरनगर कला एवं साहित्य क्षेत्र में शुष्क जिला माना जाने लगा। एक धारणा पनपाई गई- ‘कल्चर के नाम पर मुज़फ्फरनगर में सिर्फ एग्रीकल्चर है।’ यह धारणा ठीक नहीं। साहित्य के क्षेत्र में मुज़फ्फरनगर का योगदान कम नहीं है। मुज़फ्फरनगर के खतौली कस्बे में जन्मे, वामपंथी विचारक, चिन्तक एवं लेखक पं. सुन्दरलाल, (जो कायस्थ कुल में उत्पन्न हुए किन्तु अपनी विद्वता के आधार पर ‘पंडित’ कहलाये) ने ‘भारत में अंग्रेजी राज’ पुस्तक लिख कर पराधीन भारत में ब्रिटिश शासन की चूलें हिला दी थी। ब्रिटिश सरकार ने पुस्तक रिलीज होते ही जब्त कर दी थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार के प्रकाशन विभाग ने इस पुस्तक को प्रकाशित किया।

साहित्य जगत में ऊंचा स्थान रखने वाले क़स्बा मीरापुर में जन्मे- पद्मश्री से नवाजे गए विष्णु प्रभाकर ने कालजयी कृति ‘आवारा मसीहा’ लिखकर मुज़फ्फरनगर का नाम रोशन किया। पचास के दशक में मुजफ्फरनगर इस्लामिया कॉलेज में उर्दू- हिन्दी के अध्यापक मौलवी इश्हाक अलम ने गीता का पद्यानुवाद किया। इस कृति पर अलम साहब को ज्ञानपीठ बनारस से पुरस्कार मिला था। उत्तर प्रदेश शासन ने भी पुरस्कृत किया था।

शाहपुर में जन्मे आनन्द प्रकाश जैन हिन्दी के श्रेष्ठ लेखक व पत्रकार थे। वे टाइम्स ऑफ इंडिया प्रकाशन समूह बंबई में दशकों तक संपादकीय विभाग में कार्यरत रहे। उनका ‘कठपुतली के धागे’ अपने समय का चर्चित उपन्यास था।

पं. मदनमोहन मालवीय के सचिव पं. सीताराम चतुर्वेदी एवं उनके लघु भ्राता नारायण स्वामी जी के पुरखे वाराणसी से आकर मुजफ्फरनगर के पंचमुखी मौहल्ले में बस गए थे। पं. सीताराम चतुर्वेदी और नारायण स्वामी जी ने धर्म एवं अध्यात्म तथा शिवशक्ति पर अनेक पुस्तकें लिखीं। स्वामी जी द्वारा हस्तलिखित दुर्लभ पांडुलिपियां उनके भतीजे रतन गुरु जी के पास अब भी सुरक्षित हैं।

अपने समय के प्रसिद्ध आशुकवि रामजी लाल कपिल (पटवारी जी) के पुत्र पं. किशोरीलाल कपिल की वीररस में लिखी पुस्तकें किशोर अवस्था में मैंने (खूब पढ़ी थीं)।
कैराना से प्रकाशित ‘जरूरत’ के संपादक और उर्दू लेखक देवीचन्द बिस्मिल की पुस्तक ‘वीर हकीकत राय’ ने काफी हलचल मचाई थी।

भीमसेन त्यागी, सुदर्शन चोपड़ा, गिरिराज किशोर, धीरेन्द्र अस्थाना, मनु स्वामी, सुशीला शर्मा मुज़फ्फरनगर से सम्बंधित हैं। प्रकाश सूना मुजफ्फरनगर विद्युत ‘विभाग’ में कार्यरत रहे। सेवाकाल में ही साहित्य-सृजन आरंभ किया। ‘देहात’ में मुक्तक खूब प्रकाशित हुए। सूना जी की कृतियों पर अनेक पुरुस्कार मिले हैं। डॉ. प्रदीप जैन एवं डॉ कीर्तिवर्धन बैंक से सेवानिवृति के पश्चात अविकल रूप से साहित्य सृजन में तत्पर हैं। डॉ. प्रदीप जैन ने मुंशी प्रेमचन्द संबंधी श्रेष्ठ, संग्रहणीय पुस्तकें लिखी हैं। प्रेमचन्द पर यह प्रामाणिक दस्तावेज है।

मेरठ से आकर मुजफ्फरनगर में बसने वाले हरपाल सिंह ‘अरुष’ शिक्षा विभाग में अधिकारी रहे। सेवाकाल में ही साहित्य सृजन में तत्पर रहे। उन्होंने दलितों-पीड़ितों, वंचितों की दारुण परिस्थितियों को बेबाकी से रेखांकित किया। उ.प्र. राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान लखनऊ ने श्री ‘अरुष’ की पुस्तक ‘गोरकन की बीवी’ पर एक लाख रुपये का पुरस्कार प्रदान किया। छपार के ओम प्रकाश वाल्मीकि एक ही उपन्यास लिखकर दलित साहित्य के सितारे बन गए।

उदीयमान साहित्यकार डॉ. पुष्पलता ने अपने साहित्य में सदियों से चली नारी के उत्पीड़न एवं वर्जनाओं को बड़ी शिद्दत से उकेरा है। डॉ. पुष्पलता ने सामाजिक कुरीतियों व अमानवीय परम्पराओं पर अपने गद्य एवं पद्य साहित्य में यथार्थता का पुट दिया है। उनकी कृतियों पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ द्वारा महादेवी वर्मा पुरस्कार, मलाला सम्मान, साहित्य सृजन सम्मान व महिला शक्ति सम्मान मिला है।

डॉ पुष्पलता ने भारत के प्रमुख गीतकार कुंवर बेचैन पर पीएचडी कर डॉक्टरेट हासिल की। उनकी उत्कृष्ट कृतियों में ‘एक और वैदेही’, ‘एक और अहिल्या’, ‘एक और उर्मिला’, ‘सूरज पर स्याही’, ‘वामायण’, ‘नदी कहती है’, ‘पृथ्वी पर नारायण’ आदि सम्मिलित हैं। मुजफ्फरनगर के गन्ना शोध केन्द्र के सेवानिवृत वैज्ञानिक गणेश प्रसाद माथुर ने ‘रामायण मंथन’ लिखी। इसे भाई सतीश बिंदल ने अपने साप्ताहिक उत्तराखंड टाइम्स में धारावाहिक रूप में प्रकाशित किया था।

पांच दशकों से अधिक समय तक मेरे अभिन्न मित्र, शायर इकरामुल हक़ नजम ने हजारों नजम, रुबाईयाँ, गीत लिखे। ‘दायरे खयालों के’ उनके जीवन काल में प्रकाशित हुई। शायर अब्दुल हक़ सहर का काव्य संग्रह भी हाल ही में प्रकाशित हुआ है।

मेरे छोटे भाई राजगोपाल सिंह वर्मा भारत सरकार तथा उ०प्र० शासन में अधिकारी पद पर रहने के बाद सेवानिवृत्ति के पश्चात साहित्य सेवा में जुटे हैं। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर रचित उनके साहित्य का फलक बहुत व्यापक है। उनके द्वारा रचित पुस्तकें कल्पनाओं की ऊंची उड़ान का गल्फ साहित्य नहीं है वरन् प्रामाणिक दस्तावेजों, स्पष्ट इतिहास के आधार की पुष्टि करते हुए लिखी गयीं। कहानियों के पात्र जो अपने काल का सजीव चित्रण करते हैं। उनकी प्रमुख पुस्तकें- बेगम समरू का सच, दुर्गावती, जॉर्ज थॉमस: हाँसी का राजा, 1857 का शंखनाद, किंग मेकर्स (जानसठ के सैयद बंधुओं की सच्ची कहानियां), चिनहट: 1857 का संघर्ष, औपनिवेशिक काल की जुनूनी महिलायें, तारे में बसी जान, जाने वे कैसे लोग थे, लेडी ऑफ टू नेशन आदि हैं।

श्री वर्मा को उनकी कृतियों पर उत्तर प्रदेश राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, कमलेश्वर स्मृति कथा सम्मान से नवाजा जा चुका है। जानसठ के सैयद बंधुओं के राजनीतिक उत्थान-पतन पर लिखी पुस्तक ‘किंग मेकर्स’ उन्होंने स्व. हरपाल सिंह ‘अरुष’ तथा मुझे समर्पित की है। पुस्तक के नायकों-खलनायकों का चरित्र पूर्णतः तथ्यात्मक, प्रामाणिक है, यही राजगोपाल सिंह वर्मा के साहित्य की विशेषता है। सपना अग्रवाल जी की पुस्तक के बहाने इतना कुछ लिखा गया, उनकी पुस्तक के विमोचन पर बहुत-बहुत बधाइयाँ।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात

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