होटल-ढाबे और मीडिया की शैतानी !

कांवड़ यात्रा आरंभ होने से कुछ समय पूर्व मुजफ्फरनगर के बघरा कस्बा में यशवीर आश्रम के संस्थापक स्वामी यशवीर जी ने मुजफ्फरनगर के जिला अधिकारी को पत्र लिख सूचित किया था कि हरिद्वार के बाद मंगलौर, पुरकाजी से लेकर मेरठ से भी आगे तक पूरे राष्ट्रीय राज मार्ग पर अनेक मुस्लिमों ने हिन्दू देवी-देवताओं के नाम पर ढाबे और होटल खोले हुए हैं। स्वामी जी ने अपने पत्र में मांग की थी कि चूंकि कांवड़ यात्रा आरम्भ होने वाली है, मुस्लिमों के इन ढाबों के देवी-देवताओं के नाम रखने से शिव भक्तों में भ्रम फैलेगा। जो लोग श्रावण मास में प्याज-लहसुन तक नहीं खाते और भोजन की शुद्धता तथा पवित्रता का विचार रखते हैं, उन्हें ढाबों, होटलों के भ्रामक नाम रख कर गुमराह करना उचित नहीं। स्वामी यशवीर जी के इस पत्र के सन्दर्भ में ‘देहात’ में 9 जुलाई, 2024 को हमने टिप्पणी लिखी थी कि इस उचित मांग को रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाएगा। ऐसा हुआ भी किन्तु स्वामी जी के पत्र के 15-20 दिनों बाद मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अभिषेक सिंह के निर्देश पर होटल मालिकों के नाम अंकित कराना शुरू हो गया।

यह बताना आवश्यक है कि हरिद्वार, ऋषिकेश, गंगोत्री, यमुनोत्री तीर्थाटन पर जाने वाले लाखों यात्री और पर्यटक हिन्दुओं के धार्मिक नामों से प्रभावित होकर अनजाने में ही मुस्लिम होटलों, ढाबों में नाश्ता भोजन करते हैं। बात केवल कावड़ियों की ही नहीं है। हर प्रकार से स्वामी यशवीर की मांग उचित थी। किसी को होटलों के हिन्दू नाम रखने से तो नहीं रोका जा सकता है किन्तु होटल मालिक का नाम लिखने में आपत्ति समझ से परे है। इस मामूली से प्रशासनिक प्रबंध को मीडिया ने तिल का ताड़ बना दिया और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सिर पर ठीकरा फोड़ दिया। दिल्ली, मुंबई में बैठे एंकरों व पत्रकारों ने ऐसा हल्ला मचाया कि हैदराबादी भाईजान को हिटलर नजर आने लगा। एक टीवी चैनल ने तो चौबीसों घंटे होटल ढाबों के नामकरण पर यह घोषित कर दिया कि योगी उत्तर प्रदेश विधानसभा के दसों उप-चुनाव इसी मुद्दे पर लड़ेंगे। इस‌से मीडिया की गैरजिम्मेदारी, पक्षपात और साफ लफ्जों में कहें तो शैतानी प्रवृत्ति झलकती है। मीडिया का एक वर्ग कैसे वातावरण को जहरीला बनाता है, इसका यह ज्ज्वलन्त उदाहरण है।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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