संविदाकर्मियों की दुर्दशा !

मुजफ्फरनगर के चरथावल कस्बे के संविदा कर्मचारी विजय कुमार त्यागी उर्फ नीटू की 18 जुलाई, 2024 को ड्यूटी के दौरान दर्दनाक मृत्यु हो गई थी। बिजली में खराबी की शिकायत पर विद्युत उपकेन्द्र के एसएसओ एवं जूनियर इंजीनियर ने शटडाउन लेकर नीटू को फाल्ट ठीक करने भेज दिया था। वह बिजली के खम्भे पर चढ़ कर खराबी ठीक करने लगा तो बिजलीघर से अचानक लाइन खोल दी गई जिससे नीटू की करेंट प्रवाहित होने के कारण मृत्यु हो गई।

संविदाकर्मी नीटू का शव पांच घंटे खंभे पर लटका रहा। इस दु:खद घटना की खबर फैलते ही कस्बे में कोहराम मच गया। विधायक पंकज मलिक, नगर पंचायत चेयरमैन इस्लामुद्दीन व भाकियू नेता विकास शर्मा तथा बड़ी संख्या में ग्रामीण दुर्घटना स्थल पर एकत्र हो गए। जनप्रतिनिधियों के पहुंचने के बाद एसडीएम सदर निकिता शर्मा, सी.ओ. सदर राजकु‌मार साव और विद्युत निगम के अधिकारीगण भी मौके पर आए। मृतक के आश्रित को साढ़े सात लाख रुपये और विधवा को नौकरी देने का वायदा किया गया। विभागीय कर्मचारियों ने साढ़े तीन लाख रुपये एकत्र करने का आश्वासन दिया। पोस्टमार्टम के बाद एसएसओ व जेई के विरुद्ध मुकदमा कायम किया गया।

पिछले दिनों जनपद के एक संविदाकर्मी की ऐसे ही मौत हुई थी। अचानक लाइन खोल देना हत्या के समान है। उत्तरप्रदेश में बिजली के संविदाकर्मियों की स्थिति बड़ी दयनीय है। उन की सेवा शर्ते बंधुआ मजूदरों जैसी हैं। प्रदेश के 57000 संविदाकर्मी दीर्घकाल से आधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मार्च की बिजली हड़ताल के दौरान 3000 से अधिक संविदाकर्मियों को बर्खास्त कर दिया गया था। कोरोना काल में 350 संविदाकर्मियों की मृत्यु हुई, दर्जन भर को छोड़, अधिकांश को अभी तक मुआवजा नहीं मिला। 1200 संविदाकर्मी ड्यूटी के दौरान मर चुके हैं। उनके आश्रित मदद के लिए मारे-मारे फिरते हैं। सुरक्षा, पारिश्रमिक, मुआवजे की मांगे ठंडे बस्ते में डाल दी जाती हैं। विभाग के नियमित अधिकारी व कर्मचारी संविदाकर्मियों के साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार करते हैं। यह पूरे उत्तरप्रदेश की समस्या है।

वर्तमान में तो योगी सरकार को ही जिम्मेदार बताया जाता है लेकिन संविदाकर्मियों की बदहाली के लिए सपा नेता स्व. मुलायम सिंह यादव ही पूरी तरह उत्तरदायी हैं जिन्होंने नियमित कर्मियों की भर्ती के बजाय संविदाकर्मियों का फार्मूला ईजाद किया। मुलायम सिंह यादव के निर्देश पर 8 फरवरी, 2007 को तत्कालीन एम.डी और ऊर्जा सचिव ए.के. खुराना ने संविदाकर्मियों को निहायत खराब सेवा शर्तों का आदेश जारी किया था। मात्र 10000 रुपये मासिक वेतन, 8 घंटे के बजाय 12 घंटों की ड्यूटी, मृतक आश्रित मुआवजा सिर्फ 5 लाख रुपये, कोई सुरक्षा नहीं। संविदाकर्मी तब से अबतक न्याय की गुहार लगा रहे हैं।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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