हलवा तो खट्टा निकला !

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पर राहुल गांधी को जवाब देते हुए कहा- विपक्ष हर मुद्दे पर झूठ बोल रहा है। उद्यमिता को खलनायक की तरह पेश किया जा रहा है ताकि भारत में होने वाला विदेशी पूंजी निवेश रुक जाए। वे संसद और अध्यक्ष का अपमान करते हैं। हमारा उत्तर सुनने का साहस नहीं। व्यवधान डालकर बहुमत और लोकतंत्र का अपमान करते हैं। वे उद्यमिता की संस्कृति की रीढ़ तोड़ कर लघु और मध्यम इकाइयों को, जो विकसित भारत में योगदान दे रहे हैं, नष्ट करने की साजिश रच रहे हैं।

वे सेना के शौर्य पर प्रहार कर रहे हैं। सेना को जातिवाद में बांट कर देश की सुरक्षा को खतरे में डालने का षड्यंत्र रच रहे हैं। हलवा सेरेमनी का फोटो दिखा कर सीनियर अधिकारीयों में जातिवाद व साम्प्रदायिकता का जहर घोल रहे हैं। दशकों से बजट छापने वाले सरकारी प्रेस में गोपनीयता बरतने की परंपरा है। बजट की पांडुलिपि प्रेस में पहुंचने के बाद बजट छपने तक वित्त मंत्रालय के अधिकारी व प्रेस कर्मी प्रेस में ही रहते हैं। वहीं खाते पीते हैं, घर नहीं जाते। प्रेस के एक सहायक प्रबंधक के पिता की इस दौरान मृत्यु हो गई किन्तु मैनेजर अपने पिता के अंतिम संस्कार में सम्मिलित नहीं हो सका। राहुल गांधी ने प्रेस के भीतर का फोटो मंगा कर संसद में प्रदर्शित कर देश को गुमराह किया है।

राहुल व उनके समर्थक हलवा सेरेमनी जाति को लेकर सड़कों पर हल्ला मचा रहे हैं। जाति की गणना कराने वालों से जाति पूछकर अनुराग ठाकुर ने बदतमीज़ी का सलीके से जवाब दिया है। जहां तक हलवा सेरेमनी का प्रश्न है, उस पर भी राहुल की जानकारी शून्य है। ज्ञात रहे कि 1950 तक बजट की छपाई राष्ट्रपति भवन में होती थी। लेकिन फिर 1950 में बजट का कुछ हिस्सा लीक हो गया। इसके बाद छपाई नई दिल्ली के मिंटो रोड स्थित प्रेस में होने लगी। फिर 1980 से नॉर्थ ब्लॉक के बेसमेंट में बनी प्रिटिंग प्रेस में इसकी छपाई होने लगी।

बजट की गोपनीयता बनाए रखने के लिए हलवा सेरेमनी के बाद बजट की प्रिंटिंग से जुड़े मंत्रालय के करीब 100 कर्मचारी नॉर्थ ब्लॉक के बेसमेंट में बनी प्रिटिंग प्रेस में अगले कुछ दिनों के लिए रहते हैं। ये अधिकारी बजट प्रेस में केंद्रीय बजट की प्रस्तुति तक बंद रहते हैं। इस दौरान कड़ी सुरक्षा के इंतजामात किए जाते हैं। केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा संसद में बजट पेश करने के बाद ही ये अधिकारी और कर्मचारी अपने प्रियजनों के संपर्क में आते हैं।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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