10 अक्टूबर: आपको चाहे कोई सा भी टी.वी. चैनल पसन्द हो, मन पसन्द चैनल पर समाचार अवश्य ही सुनते होंगे। खबरों के दृश्य या वीडियो और रिपोर्टर द्वारा प्रेषित फुटेज ज़रूर ही देखते होंगे। सभी चैनलों ने ये दिल दहलाने वाले दृश्य दिखाये हैं।
आसमान अंधा कर देने वाले धुंवे से भर जाता है। हर जगह, हर कदम पर दहकते शोलों की बरसात हो रही है। आसमानी आफत से हलकान स्त्री-पुरुष-बच्चे-बूढ़े जान बचाने को दौड़ रहे हैं। वे तभी अल्लाह-हू-अकबर के नारों के साथ ऑटोमैटिक राइफलों से इन भागते हुए इजराइलियों पर गोलियों की बौछार कर देते हैं। सड़कें लाशों से पट जाती हैं।
गोल टोपी पहने, राइफलें लहराते हुए खूंखार भेड़िये जैसे हमास के सैनिक समूह इजराइली महिलाओं पर फायरिंग खोल देते हैं। अल्लाह-हू-अकबर चिल्लाती भीड़ घायल इजराइली औरतों के कपड़े फाड़ने टूट पड़ती है। एक स्त्री की गोद से बच्चे को छीन नीचे पटक दिया जाता है। स्त्री को उठाकर एक गाड़ी में ठूंस दिया जाता है। अल्लाह-हू-अकबर का शोर मचाने वाले लोगों का झुण्ड एक महिला को दबोच लेता है। वे जूतों की ठोकर मारते हैं। महिला को निर्वस्त्र कर सड़क पर घुमाते हैं।
मानवता को कलंकित करने वाले, बर्बरता की सभी हदें तोड़ने वाले इस प्रकार के घिनौने दृश्य आप को मजबूरन देखने पड़े होंगे। दुनिया के करोड़ों लोगों ने हमास की इस पैशाचिकता को देखा लेकिन सोनिया गांधी, खरगे, राहुल, प्रियंका और पवन खेड़ा ने नहीं देखा। तभी तो कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में फलीस्तीन के समर्थन में प्रस्ताव पास किया गया।
ईरान, तुकी, फ्रांस, ब्रिटेन, पाकिस्तान में मुस्लिम चरमपंथी इजराइली स्त्री-पुरुषों के नर संहार पर जश्न मना रहे हैं, आगजनी और तोड़फोड़ कर रहे हैं लेकिन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवेर्सिटी के छात्र अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगा के हमास की दरंदगी का समर्थन क्यूं कर रहे हैं? जब कि भारत सरकार ने इजराइल के साथ इकजुटता का इज़हार किया है। अरशद मदनी ख़ुश हैं कि इजराइली चूहों की तरह भाग रहे हैं महबूबा ने कहा कि जिंदा कौमें इसी तरह इन्तेक़ाम लेती हैं। ओवेसी ने आंकड़े दिए कि यहूदियों ने ३० हजार मुस्लिम बच्चे मारे हैं। आखिर राहुल भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा-अल्ला-इंशा-अल्ला चिल्लाने वालों के साथ कदम ताल क्यूं करते हैं?
ये वे ही लोग हैं जो उदयपुर मे कन्हैयाल की गर्दन रेते जाने पर तालिया पीटते थे और केरल में लीगियों द्वारा जलूस निकाल कर हिन्दुओं की हत्या की खुली चुनौती देते हैं।
इजराइल का विपक्ष संकट की घड़ी में एकजुट होकर वहां की सरकार के साथ मजबूती से खड़ा है, दूसरी ओर भारत के विपक्षी नेता राष्ट्रहित को धता बता कर आतंकवादियों, हिंसावादियों और भारत की संप्रभुता को चुनौती देने वाले दलालों के साथ खड़े हैं। ये लोग कदम कदम पर भारत की एकता और सुरक्षा में सेंध लगाने वालों की पीठ थपथपाते हैं, हिंसा व अराजकता फैलाने वालों को शह देते है। प्रधानमंत्री की बोटी-बोटी काटने की धमकी देने वाले को सिर पर बैठाते हैं। इजराइल-हमास युद्ध से भारत को सबक लेने की जरूरत हैं।
गोविन्द वर्मा