जुमे की नमाज के बाद की ये आवाजें !


14 अक्टूबर: कारगिल से कोलकाता तक और बंगलूरु से अहमदाबाद तक जुमे की नमाज़ के बाद हिन्दुस्तान की तमाम मस्जिदों में एक साथ वे ही आवाजे गूंजी जो अम्मान, जोर्डन से लेकर यमन तक, इराक से इंडोनेशिया-मलेशिया, पाकिस्तान-ईरान से बंगलादेश तक वहाँ की मस्जिदों में गूंजी थीं। इराक के शिया नेता मुक्तदा-अल-सद्र ने जो कहा, हिन्दुस्तान में मौलाना कल्बे जव्वाद नकवी और फुरफुराशरीफ के गद्दीनशीं पीरजादा अब्बास सिद्द्की के साथ हिन्दुस्तानी मसाजिद का एक-एक इमाम वही बोला। इन सभी ने इस्राइल को तबाह और बर्बाद करने तथा हमास के गाजियों की सलामती की हवा की। अल्ला-हू-अकबर के नारों के बीच कहा- ऐ ! अल्लाह के बन्दों, इस्लाम के मुजाहिदों, घबराना नहीं, हम तुम्हारे साथ हैं।

कल ही यानी जुमे (शुक्रवार) को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पी-20 संसदीय अध्यक्ष शिखर सम्मेलन में आतंकवाद पर कई देशों के दोहरे रवैये की निंदा की। यह जानते हुए कि जब भी हिंदुस्तान पर सीमापार से हमले हुए, इस्राइल ने हिन्दुस्तान को सैन्य सहायता दी, हाथियार दिये, जासूसी सूचना उपलब्ध कराई, किन्तु नमाज़ियों ने और हमास के समर्थकों ने प्रधानमंत्री को खूब खरी-खोटी सुनाना आरम्भ कर दिया। मोदी विरोधी मुहिम चलाने वाले लोग सामान्य शिष्टाचार भूलकर प्रधानमंत्री को सीथी गालियां तो नहीं देते किन्तु ऐसे सख्स का अनादर करते हैं जो सदा 140 करोड़ हिन्दुस्तानियों की तरक्की की बात करता है और सब का विकास, सबका साथ की भावना को साकार करने में जुटा है। सी.ए.ए. हो या हिजाब का खड़ा किया मुद्दा, या धारा ३७०, इन लोगों ने सदा नरेन्द्र मोदी को जली-कटी सुनाने से गुरेज नहीं कियी। इन सब के चेहरे टी. वी. पर देखे जा सकते हैं कि आतंकी संगठन हमास और हिजबुल्लाह के समर्थन में वे कैसे भौंकने लगते हैं।

जब इस्राइली महिला के साथ लाशों के ढेर के बीच हैवानियत होती है, नन्हें बच्चों के सिर तराशे जाते हैं, तब मेहबूबा मुफ्ती कहती हैं कि जिन्दा कौमें ऐसे ही इंतकाम लेती हैं। निहत्थे स्त्री-पुरुषों पर हमास के बम बरसते हैं तो अरशद मदनी कहता है- देखो चूहे कैसे भाग रहे हैं! एक हिमायती कैमरे पर आकर दहाड़‌ता है- अभी तो 5000 रॉकेट दागे हैं। यह तो ट्रेलर है। हमारे पास (यानी ये मौलाना हिन्दुस्तानी न हो कर फलीस्तीनी हो गए) तो 50000 टॉकेटों का जखीरा है। जब इनका इस्तेमाल होगा तब इस्राइल का वजूद मिट जायगा।

इस्राइली 4000 बरसों से मुस्लिमों-ईसाइयों का कुफ्र झेल रहे हैं। 60 लाख यहूदियों को तो हिटलर ने गैस चेम्बरों में मार डाला था। दुनिया भर में दर-दर भटकने के बाद भी वे वजूद में हैं। अब हमास के हमले के बाद संसार भर से इस्राइली येरुशलम लौट रहे हैं ताकि आतंकियों को मुँहतोड़ जवाब दिया जा सकें। यह जिन्दा कौम की जिन्दा मिसाल है, और एक वे हैं जो देश की रणनीति का विरोध करके खुद को देशभक्त बताते हैं। जुमे ने क्या यही सन्देश दिया है ?

गोविन्द वर्मा

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