तीन तलाक, सीएए, एनआरसी और अब वक्फ संशोधन विधेयक पर बहुसंख्यक हिन्दुओं और सनातन संस्कृति के विरुद्ध उन लोगों का बेनकाब होना तो स्वाभाविक है जो संविधान तथा सेक्युलरिज्म का नाम लेकर भारत पर आक्रमण करने वाले विदेशी हमलावरों को अपना नायक मान कर उनके एजेंडे को आगे बढ़ाने में जुटे हैं, लेकिन जो परिवारवादी, जातिवादी राजनीति की दुकान चलाकर लूट खसोट का बाजार गर्म रखना चाहते हैं, उनके झूठ, फरेब, छल प्रपंच से चेहरे खुदबखुद बेनकाब होते जा रहे हैं।
वक्फ संशोधन विधेयक पर लोकसभा में अर्द्ध रात्रि के बाद तक बहस चली। आधी रात के बाद पक्ष-विपक्ष का मतदान हुआ। विधेयक बहुमत से पारित हुआ लेकिन छद्म सेक्युलरवादियों की दिल की बात मुंह पर आ गई। राज्यसभा में भी ये बेनकाब होंगे। औरंगजेब की हुकूमत का गुणगान करने वाले यह कहते नजर आए कि गुरु गोविन्द सिंह के शहजादों का बलिदान हिन्दुओं की रक्षा के लिए नहीं हुआ था।
बड़ी निर्लज्जता के साथ इतिहास को तरोड़ मरोड़ कर पेश किया गया। वे जानते हैं कि सीरिया, तुर्की, ईरान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देशों में मुस्लिम आपस में ही मर, कट रहे हैं। यहां तक कि रमजान के पवित्र माह में भी मुस्लिमों का खून बहा। जानते हैं कि भारत में मुस्लिम पूर्ण सुरक्षित हैं और उन्हें पूर्ण अधिकार प्राप्त हैं फिर भी सदन में मुसलमानों को मार डालने की बात कही गई। पीठासीन अधिकारी ने इस भड़काऊ और राष्ट्र विरोधी कथन को सदन की कार्यवाही में अंकित न करने को कहना पड़ा।
देश की पुरातन संस्कृति, परम्पराओं, एकता, आपसी सहयोग तथा सद्भाव को पलीता लगाने वाले लोग कौन हैं। बाबर, हुमायूं-अकबर औरंगजेब, मोहम्मद गौरी, नादिरशाह, टीपू सुल्तान को महिमामंडित करने वाले क्या पीएफआई की 2047 की तारीख़ का इन्तजार कर रहे हैं। देश यह सब देख रहा है, समझ रहा है। शायद आने वाले संकट से जूझने की तैयारी भी कर रहा है?
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’