11 अक्टूबर: लगभग 50 वर्ष पहले की बात है। दिल्ली स्थित रूस (यूएसएसआर) के सूचना विभाग में कार्यरत पत्रकार उदयनारायण सिंह ने कुछ रूसी पत्रकारों से हमारा परिचय कराया था। इन पत्रकारों ने कहा कि भारत के अखबार व पत्रकार रचनात्मक कार्यों के विषय में रुचि नहीं रखते। पाठकों का ध्यान नकारात्मक घटनाओं में ही उलझाये रखते हैं। एक रूसी पत्रकार ने बताया कि मास्को के प्राइमरी स्कूल के कुछ छात्रों ने एक बड़ा चुम्बक बनाया, जो वाहनों के नीचे फिट किया जाता था। यह चुम्बक सड़कों पर पड़ी कीलों व लोहे के कबाड़ को खींच लेता था। इस आविष्कार से एकत्र किये गए लोहे से 55 ट्रैक्टर तैयार हुए। छात्रों के इस कौशल का समाचार रूस के प्रमुख अखबारों-प्रावदा तथा इज्वेस्तिया में विस्तार से छापा गया।
यह बात इस लिए लिखी गई कि भारतीय पत्रकारों की प्रवृत्ति आज भी निन्दा केन्द्रित बनी हुई है। यदि सरकार (चाहे वह एनडीए/भाजपा की हो, अथवा गैर भाजपाई) कोई अच्छा काम करती है तो उसे चुनावी घोषणा बताया जाता है या मतदाताओं को लुभाने का प्रयास कहा जाता है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, जनता दल (बीजू), डीएमके, झारखण्ड मुक्तिमोर्चा की सरकारों
द्वारा संचालित योजनाओं अथवा जनहितैषी कार्यों पर पत्रकारों की लेखनी अक्सर नहीं चलती। भाजपा को तो बख्शीश है ही नहीं, चाहे मोदी-योगी कितना ही विकास या नवनिर्माण करायें।
अभी-अभी समाचार आया है कि 10 अक्टूबर को योगी मंत्रिमंडल ने प्रदेश में दशकों से चालू पॉवर ऑफ अटार्नी का गड़बड़झालां बन्द कर दिया। शहरों में सीएम ग्रिड योजना चालू की जाएगी जिस पर प्रथम चरण में 500 करोड रुपये व्यय होंगे। इससे शहरों का कायाकल्प हो जायगा। एक लाख 89 हजार आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों को शुद्ध गर्म खाना मिलेगा। ईंट भट्टा संचालकों को 2 मीटर तक खनन के लिए पंजीकरण नहीं कराना होगा। प्रदेश के 16 जिलों में सरकारी बस अड्डे एयरपोर्ट जैसी सुविधाओं से भरपूर होंगे। सरकारी बचत की भूमि पर व्यायामशालाएं व कल्याण केन्द्र स्थापित होंगे। योगी मंत्रिमंडल ने और भी कई जनहितैषी कार्यों को मंजूरी दी है। ये सब सराहनीय निर्णय हैं।
यहाँ एक पेंच है। ग्रामीण पत्रकार, तहसील-जिला स्तर के छोटे अख़बार सदा ज़मीन से जुड़े रहे। ग्राम प्रधान, ब्लॉक प्रमुख, बीडीओ, लेखपाल, कामदार, पतरौल आदि से इन पत्रकारों का सीधा वास्ता था। वे सरकार की योजनाओं का फ़ोकट में प्रचार करते थे। आज बड़े-अखबार व टीवी चैनल करोड़ों रुपये रोज लेकर सरकार के विकास कार्यों का प्रचार करते हैं। पता नहीं कब ये प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री की गर्दन नाप दें। आज ग्रामीण अंचल के पत्रकार या तो पूंजीपतियों की चाकरी करने पर विवश हैं या रोजी-रोटी के लिए दूसरे धंधों में उलझे हैं। बड़े अखबारों व चैनलों के भरण पोषण के लिए सरकार के पास मोटे बजट हैं। ग्राउंड जीरो पर प्रगति-विकास की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों की कलम बड़े अखबारों के मालिकान के पास गिरवी रखी है। पैसे देकर सरकार चाहे जैसा प्रचार कराले। जो अखबार सरकार के अच्छे कार्यों का विवरण छापते थे वे बंद हो गए हैं या मरणासन्न स्थिति में हैं।
गोविन्द वर्मा