जम्बू द्वीपे भारत खण्डे !

हिन्दू समाज में जब कभी भी धार्मिक अनुष्ठान होता है तब यज्ञ-हवन के प्रारंभ में नव ग्रहों की स्थापना करते हुए यज्ञ का पुरोहित जम्बू द्वीपे भारत खंडे उच्चारित करता हुआ नगर, या ग्राम के निकट स्थित नदी का नाम लेता है और अपने यजमान का नाम लेकर यज्ञ के हेतु को प्रकट करता है। भारत में यह परम्परा अनादि काल से जारी है। तात्पर्य यह कि भारत का प्राचीन नाम भारत वर्ष ही था। आर्यावर्त प्राचीनतम नाम था। मुस्लिम आक्रमणकारियों के आगमन के साथ ‘हिन्दुस्तान’ नाम चलाया गया (वास्तव में शुद्ध शब्द तो ‘हिन्दुस्थान है)।

अंग्रेजों ने भारत का नाम ‘इंडिया’ रख दिया। जो गुलामी का प्रतीक था। स्वतंत्रता के बाद भी मुगलों की महानता और अंग्रेजों की सर्वोच्चता प्रदर्शित करने वाले नेता सत्ता पर काबिज़ रहे। यही कारण है कि इन्होंने संविधान में इंडिया दैट इस भारत लिख मारा। सीधी सच्ची बात है कि राहुल गांधी अपने परनाना के एजेंडों को आगे बढ़ा रहे हैं। करुणानिधि, एम.के. स्टालिन, उनके पुत्र उदयनिधि आदि के आराध्य तो पेरियार हैं जो आर्य या भारतीय संस्कृति को मानते ही नहीं। पेरियार तो सार्वजनिक रूप से हिन्दू देवी-देवताओं को झाड़ू से पीटते थे। अतः राहुल का इन हिन्दू-सनातन विरोधियों से रिश्ता जुड़ना स्वाभाविक है।

जो लोग कांग्रेसियों की बीफ (गोमांस) पार्टी, लालू की मटन पार्टी (बकरे के मांस) की पार्टी में शिरकत, जे.एन.यू. के टुकड़े-टुकड़े गैंग, भारत मुर्दाबाद कहने वालों और तिरंगा न उठाने वाली महबूबा मुफ्ती को अपनी भारत जोड़ो यात्रा में शामिल करते हों, उनसे आप क्या अपेक्षा रखते हैं? जो शख्स भारत को राष्ट्र न मानकर राज्यों का समूह कहता हो, उसको जबरदस्ती हिन्दू सनातनी मानने का क्या औचित्य है? मल्लिकार्जुन खड़गे (उनका बेटा भी) सनातन धर्म से घृणा करेंगे ही क्योंकि वे अपने आकाओं के मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि कमलनाथ जैसे कांग्रेसी नेता हिन्दू राष्ट्र का अलख जगाने वाले धीरेन्द्र शास्त्री के चरणों में नतमस्तक क्यूं होते हैं? इन दिनों कमलनाथ छिंदवाड़ा में घोर सनातनी प्रदीप मिश्रा की शिव पुराण कथा करवा रहे हैं। जब राहुल के संगी-साथी सनातन को नष्ट करने की डींग हाँकते है, तब ऐसा क्यूं ? यह धोखाधड़ी है या सनातन की ताकत? राहुल ठीक से समझ लें कि भारत सनातन संस्कृति का द्योतक है।? न सनातन संस्कृति नष्ट होगी, न ही भारत। यह ध्रुवसत्य है।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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