कैसा आतंक था आपातकाल का !

लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के आह्वान से मुजफ्फरनगर भी आंदोलित हो उठा। आपातकाल घोषित होते ही जिला मुजफ्फरनगर में भी गैर कांग्रेसी राजनीतिक कार्यकर्ताओं के विरुद्ध दमन चक्र चल पड़ा।

कम्युनिस्ट कार्यकर्ता सुरेंद्र सिंह (पुत्र कामरेड अशोक) उन दिनों आनंद मार्केट स्थित भास्कर प्रेस के मालिक पीताम्बर त्यागी के पास रहते थे। इमरजेंसी लागू होते ही वे रूपोश हो गये किंतु पुलिस त्यागी जी के पीछे पड़ गई। वे प्रेस बंद कर घास मंडी स्थित अपने मामा के यहां शरण लेने पहुंचे तो उन्होंने हाथ जोड़ लिए क्योंकि वे डीएवी कॉलेज में प्राध्यापक थे और त्यागी जी को शरण देने पर उन पर भी आँच आ सकती थी। ग्राम खुड्डा स्थित ननिहाल वालों ने भी शरण देने से इंकार कर दिया।

पीताम्बर त्यागी जी प्रेस (दैनिक देहात) पहुंचे और बताया कि उन्हें चरथावल के एक कॉलेज के प्रश्नपत्र छाप कर देने हैं, न दिये तो परीक्षाएं कैसे होगी। वे कई दिनों तक देहात प्रेस में रहे। पुलिस व प्रशासन सख्त था किन्तु कुछ अधिकारी संवेदनशील भी थे। पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा ने एक उच्च पुलिस अधिकारी के समक्ष त्यागी जी की समस्या रखी तो उन्होंने कहा कि वे प्रेस खोल लें और प्रश्नपत्र छाप लें। हमें कामरेड सुरेंद्र के सामान की तलाशी लेने दें। तलाशी में कोई आपत्तिजनक साहित्य नहीं मिला। पीताम्बर त्यागी जी इतने घबराये हुए थे कि अकेले अपने प्रेस तक जाने को तैयार न थे। मैं उनके साथ प्रेस खुलवाने गया था। यह इंदिरा गांधी के आपातकाल की दहशतपूर्ण स्थिति थी।

इंदिरा गांधी और आपातकाल पर बाबा नागार्जुन की कविता की ये पंक्तियां डायरी में नोट कर ली थी जो आज याद आ गई:-

ख़ूब तनी हो, ख़ूब अड़ी हो, ख़ूब लड़ी हो
प्रजातंत्र को कौन पूछता, तुम्हीं बड़ी हो
देश बड़ा है, लोकतंत्र है सिक्का खोटा
तुम्हीं बड़ी हो, संविधान है तुम से छोटा
तुम से छोटा राष्ट्र हिन्द का, तुम्हीं बड़ी हो
खूब तनी हो,खूब अड़ी हो,खूब लड़ी हो

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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