धार्मिक आजादी को लेकर अमेरिका भारत को झटका देते हुए चिंता वाले देशों की लिस्ट में डालने जा रहा है। अमेरिका की एक संस्था ने बाइडन प्रशासन से मांग की है कि वो भारत सहित चार देशों को कंट्री ऑफ पार्टिकुलर कंसर्न यानी विशेष चिंता वाले देशों की लिस्ट में रखे। बाइडन प्रशासन से यह सिफारिश पिछले साल यानी 2020 में भारत में धार्मिक आजादी की स्थिति को लेकर की गई है।
अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी को लेकर यूनाइडेट स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रीलिजस फ्रीडम की रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई है। आयोग ने भारत में धार्मिक आजादी की स्थिति चिंताजनक बताया हैण्
इसके अलावा अमेरिकी आयोग ने 10 देशों को भी फिर से इसी सूची में डालने की सिफारिश की है। इन देशों में म्यांमार, चीन, इरिट्रिया, ईरान, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, तजाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान शामिल हैं।
अमेरिकी आयोग ने धार्मिक आजादी के मानदंड इंटरनेशनल रीलिजस फ्रीडम एक्ट के जरिये निर्धारित किए गए हैं। आयोग ने भारत को विशेष चिंता वाले देशों की श्रेणी में शामिल किए जाने की सिफारिश की है। भारत ने पहले कहा था कि अमेरिकी संस्था अपने पूर्वाग्रहों के मुताबिक इंटरनेशनल रीलिजस फ्रीडम की सूची का निर्धारण करती है।
पिछले साल जब अमेरिकी निकाय ने ऐसी ही सिफारिश की थी तब विदेश मंत्रालय ने कहा था कि हम अपने पुराने रुख पर अडिग हैं कि कोई बाहरी हमारे नागरिकों की स्थिति के बारे में आकर न बताए जिन्हें संवैधानिक सुरक्षा मिली हुई है। विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत में ऐसी व्यवस्था है जो धार्मिक स्वतंत्रता और कानून के शासन की सुरक्षा की गारंटी देती है।
अन्य देशों के उलट यूएससीआईआरएफ की तरफ से भारत को विशेष चिंता वाले देशों की सूची में डाले जाने को लेकर मतभेद भी देखने को मिलेण् आयोग के सदस्य जॉनी मूरे ने अन्य 9 सदस्यों से असहमति जताते हुए भारत को कंट्री ऑफ पार्टिकुलर कंसर्न नहीं बल्कि क्रॉसरोड्स सूची में रखने की बात कही। उनका कहना था कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और उसकी पहचान विविधता है और उसका धार्मिक जीवन ही उसकी सबसे महान ऐतिहासिक खूबसूरती रही है। भारतीय संस्थाओं का समृद्ध इतिहास रहा है जो अपने मूल्यों की रक्षा करती हैं।
जॉनी मूरे ने कहा कि भारत को हमेशा धार्मिक तनाव के चलते राजनीतिक और अंतर-जातीय संघर्ष का विरोध करना चाहिए। भारत सरकार और उसके लोगों के पास सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने और सभी के अधिकारों की रक्षा करने के लिए सब कुछ है। भारत यह कर सकता है। उसे यह करना चाहिए।
अमेरिका ने इस संस्था को 1998 में स्थापित किया था। पिछले एक दशक से ज्यादा समय से भारत ने इंटरनेशनल रीलिजस फ्रीडम के सदस्यों को वीजा देने से मना करता रहा है जो भारत में आकर धार्मिक आजादी की स्थिति का निरीक्षण करना चाहते थे। वैसे भी भारत इस संस्था को तवज्जो नहीं देता है।
बहरहाल, रिपोर्ट में अमेरिका से उन लोगों की संपत्ति जब्त करने और उनकी अमेरिका में एंट्री बैन करने की सिफारिश की गई है जिन पर धार्मिक आजादी के उल्लंघन का आरोप है। इसमें अमेरिकी कांग्रेस से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के दौरान धार्मिक आजादी के मुद्दे को उठाने की बात कही गई है।
रिपोर्ट में भारत में पारित किए गए विवादित नागरिकता कानून सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर एनआरसी का जिक्र किया गया जिसमें दक्षिण एशियाई देशों के गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को फौरन नागरिकता देने का प्रावधान किया गयाण् इस कानून के विरोध में पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन हुए। इस कानून को लेकर हिंसा भड़की जिसके निशाने पर मुसलमान थेण् हालांकि भारत सरकार ने सीएए को अपना आंतरिक मामला बताया था और पड़ोसी मुल्कों में उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को पनाह देने की बात कही थी।
अमेरिकी रिपोर्ट में सितंबर 2020 में गैर-सरकारी संगठनों पर बंदिश बढ़ाने के लिहाज से भारतीय संसद में विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम में संशोधन का जिक्र है। जिससे सिविल सोसाइटी, धार्मिक संगठन और मानवाधिकार संगठन प्रभावित हुए हैं। इस संशोधन से वे संगठन प्रभावित हुए हैं जो धार्मिक स्वतंत्रता की वकालत करते रहे हैं।