थाईलैंड में बुधवार को हुए विशाल जन प्रदर्शनों के बाद थाईलैंड सरकार ने गुरुवार तड़के देश में आपातकाल लागू कर दिया। टेलीविजन पर पुलिस अधिकारियों ने एक लाइव प्रसारण में कहा कि ये कदम “शांति और व्यवस्था” बनाए रखने के लिए उठाया गया है। इसके तहत प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई है। आंदोलन के प्रमुख नेताओं सहित बहुत से कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है। ये आंदोलन पिछली फरवरी से चल रहा है। गुजरे अगस्त में आंदोलनकारियों ने प्रधानमंत्री के इस्तीफे और राजशाही पर नियंत्रण लगाने की मांग की थी। ये पहला मौका था, जब सीधे तौर पर राजतंत्र या राज परिवार का सड़कों पर उतरकर जन समुदाय ने विरोध किया हो। बुधवार को इस विरोध के और तेज होने के संकेत मिले।
गिरफ्तार नेताओं में 36 वर्षीय मानवाधिकार अधिवक्त एनोन नम्पा और युवा नेता पनुसाया सिथिजिरावत्तनकुल भी हैं। पिछले अगस्त में भी थाईलैंड में बड़े पैमाने पर जन प्रदर्शन हुए थे। उस दौरान एनोन नम्पा ने तब तक जारी वर्जनाओं को तोड़ते हुए खुलकर राजशाही पर सार्वजनिक बहस छेड़ दी थी। उन्होंने इस व्यवस्था में सुधार की अपील की थी। प
नुसाया ने तब 10 सूत्री घोषणापत्र जारी किया था, जिसमें राजशाही में सुधार की बात भी शामिल थी। तब आंदोलनकारियों ने कहा था कि उनका विरोध तभी ठहरेगा, जब उनकी ये तीन मांगें पूरी की जाएंगी- संसद भंग की जाए, संविधान को फिर से लिखा जाए और सरकार आलोचकों का दमन बंद करे।
कोरोना महामारी के कहर के बावजूद अगस्त में हफ्ते भर तक जोरदार प्रदर्शन हुए थे। उसी आंदोलन का अगला दौर पिछले कुछ दिनों से राजधानी बैंकाक और थाईलैंड के दूसरे शहरों की सड़कों पर दिख रहा था। इस पर काबू पाने के लिए ही देश में इमरजेंसी लगाई गई है। अब ये देखने की बात होगी कि इससे जन विरोध को कब तक रोका जा सकता है।
थाईलैंड में राजनीतिक उथल-पुथल का लंबा इतिहास है। मगर ताजा दौर के प्रदर्शन इस साल फरवरी में शुरू हुए, जब युवाओं की खास पसंद फ्यूचर फॉरवर्ड पार्टी (एफएफपी) को भंग कर दिया गया। मार्च 2019 में हुए संसदीय चुनाव में ये पार्टी तीसरे नंबर आई थी। युवा मतदाताओं ने उम्मीद जोड़ी थी कि ये पार्टी लंबे समय से चले आ रहे सैनिक शासन से देश को मुक्त कराएगी।