उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का धराली गांव मंगलवार को अचानक आई प्राकृतिक आपदा की चपेट में आ गया। दोपहर के समय गांव के ऊपर से आए तेज मलबे और पानी ने बड़ी तबाही मचाई। चंद मिनटों में कई मकान, होटल और दुकानों को बहा ले गया। अब तक चार लोगों के शव बरामद किए जा चुके हैं, जबकि कई अन्य लोगों के बारे में कोई सुराग नहीं मिला है। राहत कार्यों में जुटी टीमों ने अब तक 190 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया है।
इस अप्रत्याशित आपदा के पीछे खीर गंगा नदी के ऊपरी हिस्से में संभावित बादल फटने की घटना को कारण माना जा रहा है, हालांकि मौसम वैज्ञानिक इस अनुमान से सहमत नहीं हैं।
IMD ने बादल फटने की संभावना से किया इनकार
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के वैज्ञानिक रोहित थपलियाल ने समाचार एजेंसी को बताया कि उपलब्ध मौसमीय आंकड़ों के आधार पर बादल फटने की घटना की पुष्टि नहीं होती। उन्होंने कहा कि मंगलवार को उत्तरकाशी में महज 27 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो किसी भी बाढ़ या बादल फटने की स्थिति के लिए निर्धारित मानकों से काफी कम है। जब उनसे पूछा गया कि फिर इतनी भीषण बाढ़ की वजह क्या हो सकती है, तो उनका कहना था कि यह मामला गहन वैज्ञानिक जांच का विषय है।
क्या है बादल फटने की वैज्ञानिक परिभाषा?
आईएमडी के अनुसार, यदि किसी क्षेत्र में 20 से 30 वर्ग किलोमीटर के दायरे में एक घंटे में 100 मिलीमीटर या उससे अधिक बारिश हो, तो उसे बादल फटना माना जाता है। वहीं, आईआईटी जम्मू और एनआईएच रुड़की द्वारा 2023 में किए गए अध्ययन में बताया गया कि बादल फटना अक्सर बहुत छोटे, लगभग एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 100-250 मिमी प्रति घंटे की तीव्र बारिश होती है।
विशेषज्ञों की अलग राय
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के पूर्व वैज्ञानिक डी.पी. डोभाल का मानना है कि धराली के जिस ऊंचाई वाले क्षेत्र से मलबा नीचे आया, वहां बादल फटने की संभावना बेहद कम होती है। उनके अनुसार, यह घटना किसी विशाल हिमखंड, चट्टान गिरने या भूस्खलन की वजह से बनी बर्फ-चट्टानों के मिश्रित मलबे (ग्लेशियर डेब्रिस) के अचानक बहने से हुई हो सकती है। उन्होंने बताया कि इस घटना के पीछे के सटीक कारणों को समझने के लिए सैटेलाइट इमेज का विश्लेषण किया जाना ज़रूरी है, जिसके लिए इसरो से चित्रों की मांग की गई है।
भौगोलिक स्थिति से संवेदनशील बना उत्तराखंड
हाल के वर्षों में हुए शोध भी दर्शाते हैं कि उत्तराखंड में चरम मौसमी घटनाएं बढ़ रही हैं। जर्नल ऑफ जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, 2010 के बाद राज्य में अत्यधिक बारिश और तेज सतही जल बहाव की घटनाओं में तेज़ी आई है। इससे पहले, 1998 से 2009 के बीच तापमान वृद्धि के बावजूद वर्षा में गिरावट दर्ज की गई थी।
राज्य की भौगोलिक संरचना — जैसे कि तीव्र ढलान, भूस्खलन-प्रवण क्षेत्र और टेक्टोनिक फॉल्ट जैसे मेन सेंट्रल थ्रस्ट — इसे प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यंत संवेदनशील बनाते हैं।
ताज़ा आंकड़े और चेतावनी
नेचुरल हजार्ड्स जर्नल में नवंबर 2023 में प्रकाशित शोध के अनुसार, 2020 से 2023 के बीच केवल मानसून सीजन में 183 आपदाएं दर्ज की गईं, जिनमें 34.4% भूस्खलन, 26.5% अचानक आई बाढ़ और 14% बादल फटने की घटनाएं थीं। वहीं, विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (CSE) द्वारा जारी एटलस बताता है कि जनवरी 2022 से मार्च 2025 के बीच हिमालयी राज्यों में 822 दिनों तक चरम मौसमी घटनाएं हुईं, जिनमें 2,863 लोगों की जान गई।
विशेषज्ञों का कहना है कि इन आपदाओं की तीव्रता में इंसानी गतिविधियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। अनियंत्रित सड़क निर्माण, वनों की कटाई, पर्यटन के बढ़ते दबाव और नदी किनारे अनियोजित बस्तियां इस खतरे को और बढ़ा रही हैं।