महू स्थित आर्मी वार कॉलेज में जारी दो दिवसीय त्रि-सेवा संगोष्ठी ‘रण संवाद 2025’ का दूसरा दिन बुधवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के संबोधन के साथ संपन्न हुआ। इस अवसर पर उन्होंने भारत की सैन्य शक्ति, युद्धकला की परंपरा और संवाद की संस्कृति पर विस्तार से विचार साझा किए। सेमिनार में तीनों सेनाओं के शीर्ष अधिकारी, रक्षा विशेषज्ञ, उद्योग जगत के प्रतिनिधि और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा जानकार शामिल हुए।
“भारत ने कभी युद्ध की शुरुआत नहीं की”
रक्षा मंत्री ने कहा कि भारत ने न तो कभी किसी पर आक्रमण किया और न ही युद्ध छेड़ा है, लेकिन मौजूदा वैश्विक हालात में यदि कोई चुनौती सामने आती है तो उसका सामना सशक्त तरीके से करना आवश्यक है। उन्होंने रक्षा तैयारियों को लगातार बेहतर करने, तकनीकी विकास और मित्र देशों से सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया।
“संवाद हमारी संस्कृति का मूल”
राजनाथ सिंह ने कहा कि ‘रण संवाद’ शब्द अपने आप में गहन संदेश लिए है। उन्होंने बताया कि जहां ‘रण’ युद्ध का प्रतीक है, वहीं ‘संवाद’ मेल-मिलाप और चर्चा का प्रतीक है। पहली नजर में ये विरोधाभासी लग सकते हैं, लेकिन भारतीय संस्कृति में युद्ध और संवाद हमेशा साथ-साथ चलते हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि महाभारत के युद्ध को रोकने के लिए श्रीकृष्ण स्वयं शांति संदेश लेकर गए थे। रक्षा मंत्री ने कहा कि संवाद युद्ध से पहले, दौरान और बाद में भी जारी रहता है और यही इसका सबसे बड़ा महत्व है।
आत्मनिर्भरता पर जोर
राजनाथ सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में रक्षा क्षेत्र में बड़े नीतिगत सुधार किए गए हैं। स्वदेशी डिजाइन, विकास और उत्पादन को बढ़ावा देने से आत्मनिर्भरता अब सपना नहीं बल्कि साकार हकीकत बन चुकी है। उन्होंने बताया कि 2014 में देश का रक्षा उत्पादन 46,425 करोड़ रुपये था, जो अब बढ़कर 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। इसमें निजी क्षेत्र का योगदान भी 33,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का है।
उन्होंने कहा कि भारत के रक्षा निर्यात, जो एक दशक पहले हजार करोड़ रुपये से भी कम थे, आज 24,000 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर चुके हैं। यह केवल व्यापार का विषय नहीं बल्कि भारत की बदलती वैश्विक पहचान का प्रतीक है।
स्वदेशी तकनीक और नए आयाम
रक्षा मंत्री ने स्वदेशी रक्षा प्लेटफॉर्म का उल्लेख करते हुए कहा कि लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट ‘तेजस’, एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम, आकाश मिसाइल सिस्टम और स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर आज भारत की तकनीकी क्षमता का परिचायक हैं। उन्होंने बताया कि भारत अब रक्षा उपकरणों के आयातक से निर्माता बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।
उन्होंने खुलासा किया कि देश ने पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान निर्माण की ओर कदम बढ़ा दिए हैं और जेट इंजन तकनीक में भी नई प्रगति हो रही है।