नई दिल्ली। भारतीय नौसेना वर्ष 2025 में आधुनिकीकरण की दिशा में एक बड़ी छलांग लगाने जा रही है। इस वर्ष नौसेना के युद्धपोतों के बेड़े में कुल नौ नए पोत शामिल किए जाएंगे, जिनका निर्माण देश की अग्रणी शिपयार्ड कंपनियों—मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स (MDL), हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (HSL) और गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE)—द्वारा किया जाएगा। अनुमान है कि इन परियोजनाओं पर लगभग 18,101 करोड़ रुपये का खर्च आएगा।
प्रोजेक्ट 17A फ्रिगेट्स: अत्याधुनिक स्टील्थ युद्धपोत
प्रोजेक्ट 17A फ्रिगेट्स, भारत की सबसे आधुनिक युद्धपोत परियोजना मानी जा रही है, जिसे MDL और GRSE संयुक्त रूप से निर्मित कर रहे हैं। प्रत्येक युद्धपोत का वजन लगभग 6,670 टन होगा, जिसकी लंबाई 149 मीटर और चौड़ाई करीब 17.8 मीटर होगी।
इन पोतों की खासियत इनकी स्टील्थ डिजाइन है, जिससे ये रडार की पकड़ में नहीं आते। मल्टी-रोल क्षमताओं से लैस ये फ्रिगेट्स समुद्र, आकाश और भूमि पर एक साथ ऑपरेशन कर सकते हैं। इनमें ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल और बराक-8 जैसी लंबी दूरी की एयर डिफेंस मिसाइलें लगी हैं। आधुनिक संचार प्रणालियां इन्हें अन्य नौसेना पोतों और वायुयानों के साथ समन्वय में सक्षम बनाती हैं, जिससे संयुक्त संचालन की क्षमता कई गुना बढ़ जाती है।
HSL के सर्वे वेसल और डाइविंग सपोर्ट वेसल्स
हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (HSL) द्वारा निर्मित एक सर्वे वेसल (लार्ज) और दो डाइविंग सपोर्ट वेसल्स (DSV) भारतीय नौसेना के लिए बेहद उपयोगी साबित होंगे। सर्वे वेसल की लागत लगभग 2,435 करोड़ रुपये और DSVs की लागत करीब 2,050 करोड़ रुपये है।
सर्वे वेसल (लार्ज)
यह पोत समुद्र के तल की संरचना का विस्तृत नक्शा तैयार करने में सक्षम है। इसमें अत्याधुनिक सोनार, कैमरे और सेंसर लगे हैं, जो समुद्र की गहराइयों की सटीक जानकारी देते हैं। इसमें हेलीकॉप्टर उतारने की सुविधा और सीमित आत्मरक्षा हेतु हल्के हथियार की क्षमता भी है।
डाइविंग सपोर्ट वेसल्स
ये विशेष पोत गहरे समुद्र में गोताखोरी अभियानों और आपातकालीन पनडुब्बी बचाव अभियानों के लिए डिजाइन किए गए हैं। इनमें डाइविंग बेल, रेस्क्यू सबमरीन और हेलीकॉप्टर संचालन की सुविधा है। ये पोत 60 दिनों तक समुद्र में लगातार कार्य कर सकते हैं और मरम्मत, सर्वेक्षण तथा रणनीतिक सूचनाओं के एकत्रीकरण में उपयोगी हैं।
GRSE द्वारा निर्मित शैलो वॉटर क्राफ्ट्स (SWC)
गार्डन रीच शिपबिल्डर्स को 8 शैलो वॉटर क्राफ्ट निर्माण का कार्य सौंपा गया है, जिनमें से 3 क्राफ्ट्स वर्ष 2025 में नौसेना को सौंपे जाएंगे। इनकी कुल लागत लगभग 2,366.75 करोड़ रुपये होगी। इनमें ‘अर्नाला’ नामक क्राफ्ट शीघ्र ही कमीशन किया जाएगा।
ये क्राफ्ट उथले जल क्षेत्रों में एंटी-सबमरीन ऑपरेशन के लिए तैयार किए गए हैं। ये पोत टॉरपीडो, एएसडब्ल्यू रॉकेट, माइंस, क्लोज-इन वेपन सिस्टम (CIWS) और 12.7 मिमी की रिमोट कंट्रोल्ड गन से सुसज्जित हैं। लगभग 2.7 मीटर के ड्राफ्ट के साथ ये क्राफ्ट उन तटीय क्षेत्रों में भी काम कर सकते हैं जहां बड़े पोत नहीं पहुंच पाते। इनका 80% से अधिक भाग स्वदेशी तकनीक पर आधारित है।
INS तमाल: रूस से आने वाला आधुनिक फ्रिगेट
जून के अंत तक रूस से भारतीय नौसेना को INS तमाल प्राप्त होगा। यह मल्टी-रोल स्टील्थ गाइडेड मिसाइल फ्रिगेट, जिसकी लागत करीब 3,250 करोड़ रुपये है, नौसेना की युद्धक क्षमता को काफी बढ़ावा देगा।
INS तमाल में ब्रह्मोस मिसाइलें, 100 मिमी आर्टिलरी गन, श्तिल मिसाइल सिस्टम और एंटी-सबमरीन टॉरपीडो तथा रॉकेट लॉन्चर लगे हैं। यह पोत सतह से लेकर आकाश और समुद्र की गहराई तक दुश्मन को जवाब देने में सक्षम होगा। इसकी रेंज लगभग 3,000 किलोमीटर है।
‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ को बढ़ावा
इन सभी जहाजों का निर्माण स्वदेशी तकनीक और संसाधनों से किया जा रहा है, जिससे ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियानों को मजबूती मिल रही है। इससे न केवल देश की समुद्री सीमाएं सुरक्षित होंगी, बल्कि घरेलू शिपबिल्डिंग उद्योग को भी नई दिशा मिलेगी।