हर वर्ष 11 जुलाई को मनाए जाने वाले विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने भारत की जनसंख्या को लेकर एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत वर्ष 2025 तक अनुमानित 1.46 अरब की आबादी के साथ विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बना रहेगा।
हालांकि, जनसंख्या वृद्धि की गति अब धीमी पड़ती दिख रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate) घटकर 1.9 पर आ गई है, जो 2020 में 2.1 थी। यह दर इतनी कम है कि यदि प्रवास को शामिल न किया जाए, तो अगली पीढ़ी में जनसंख्या का स्तर बनाए रखना कठिन होगा।
युवाओं की बड़ी हिस्सेदारी, लेकिन क्षेत्रीय असमानता बनी हुई
रिपोर्ट में बताया गया है कि 0 से 14 आयु वर्ग के बच्चे देश की 24% आबादी हैं, जबकि 15 से 64 वर्ष के वयस्कों की हिस्सेदारी 68% है। बुजुर्गों की जनसंख्या (65 वर्ष और उससे ऊपर) अभी 7% है। यह इंगित करता है कि भारत की युवा जनसंख्या फिलहाल देश की मजबूती है।
हालांकि, प्रजनन दर में राज्यों के बीच बड़ा अंतर देखने को मिला है। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अब भी उच्च प्रजनन दर बनी हुई है, जहां परिवार नियोजन संसाधनों की सीमित पहुंच और सामाजिक मान्यताएं इसकी वजह हैं। इसके विपरीत, दिल्ली, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में प्रजनन दर रिप्लेसमेंट लेवल (2.0) से भी कम है, जहां शहरी मध्यवर्गीय परिवारों में कार्य-जीवन संतुलन और आर्थिक कारणों से बच्चे कम पैदा किए जा रहे हैं।
शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से मिली बड़ी मदद
भारत में जनसंख्या वृद्धि दर को नियंत्रित करने में शिक्षा, जागरूकता और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की अहम भूमिका रही है। UNFPA इंडिया के प्रतिनिधि एंड्रिया एम. वोजनार ने कहा कि 1970 में एक महिला औसतन पांच बच्चे जन्म देती थी, जबकि अब यह संख्या घटकर लगभग दो बच्चों पर पहुंच गई है। उन्होंने कहा कि यह बदलाव प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर पहुंच और महिलाओं की शिक्षा में वृद्धि का परिणाम है। साथ ही, इससे मातृ मृत्यु दर में भी उल्लेखनीय गिरावट आई है।
निष्कर्ष
रिपोर्ट का निष्कर्ष यह है कि जनसंख्या आकार से ज्यादा चुनौतीपूर्ण मुद्दा यह है कि लोग अपनी प्रजनन संबंधी पसंद को स्वतंत्रता और जिम्मेदारी के साथ तय कर सकें। इसके लिए सामाजिक और स्वास्थ्य ढांचे में सुधार की लगातार आवश्यकता है।