नई दिल्ली। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सार्वजनिक रूप से यह संकेत दिया है कि सक्रिय राजनीति से विदाई के बाद वे किस दिशा में जीवन बिताना चाहेंगे। ‘सहकार संवाद’ कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि उन्होंने निर्णय लिया है कि राजनीति से संन्यास लेने के बाद वे अपना जीवन वेदों, उपनिषदों और प्राकृतिक खेती के अध्ययन को समर्पित करेंगे। उनके अनुसार, प्राकृतिक खेती एक वैज्ञानिक और लाभकारी प्रयोग है, जो आने वाले समय में खेती की दिशा को सकारात्मक रूप से बदल सकता है।
शाह ने अपने संबोधन में कहा कि जब उन्हें गृह मंत्रालय सौंपा गया तो लोगों ने इसे एक प्रमुख और शक्तिशाली विभाग माना, लेकिन जब उन्हें सहकारिता मंत्रालय का दायित्व मिला, तो उन्हें लगा कि यह विभाग कहीं अधिक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली है, क्योंकि यह सीधे तौर पर किसानों, ग्रामीणों, गरीबों और पशुपालकों से जुड़ा हुआ है।
त्रिभुवनभाई पटेल को दी श्रद्धांजलि
कार्यक्रम के दौरान शाह ने सहकारिता आंदोलन के आदर्श पुरुष त्रिभुवनभाई पटेल का विशेष रूप से उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि गुजरात जैसे राज्य में, जहां सहकारी संस्थाएं मजबूत हुई हैं, वहाँ आज करोड़ों का कारोबार हो रहा है। यह सोच त्रिभुवनभाई पटेल की ही थी, जिन्होंने स्वयं के नाम या पहचान के लिए कभी कोई प्रयास नहीं किया।
उन्होंने यह भी कहा कि जब उन्होंने संसद में त्रिभुवनभाई का नाम लिया, तो बहुत लोगों ने यह सवाल उठाया कि ये कौन हैं, क्योंकि उन्होंने कभी प्रचार की परवाह नहीं की। कांग्रेस द्वारा विरोध के बावजूद, शाह ने उनके नाम पर विश्वविद्यालय स्थापित करने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि गुजरात की महिलाएं आज भी त्रिभुवन काका को आशीर्वाद देती हैं, क्योंकि उन्होंने सहकारिता की असली भावना को जमीन पर उतारा।
गुजरात में सहकारिता आंदोलन का प्रभाव
शाह ने याद करते हुए कहा कि जब वे पैदा हुए थे, तब बनासकांठा और कच्छ जैसे क्षेत्रों में पानी सप्ताह में एक बार नहाने को मिलता था। उस समय पानी की बेहद कमी थी, लेकिन सहकारिता आंदोलन के ज़रिये इस क्षेत्र में बदलाव आया। आज यहां के परिवार दूध उत्पादन और बिक्री से करोड़ों की आमदनी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह परिवर्तन त्रिभुवनभाई पटेल द्वारा रखी गई मजबूत नींव का परिणाम है।