पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची में 13.69% फर्जी नाम, एसआईआर से पहले बड़ा दावा

देशभर में मतदाता सूची को लेकर जारी राजनीतिक बहस अब पश्चिम बंगाल तक पहुंच गई है। बिहार में चुनाव आयोग के विशेष मतदाता पुनरीक्षण अभियान (SIR) के दौरान लाखों नाम हटाए जाने के बाद अब राज्य की सूची पर भी संदेह जताया जा रहा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची में करीब 13.69 प्रतिशत नाम फर्जी या मृतक व्यक्तियों के हैं।

पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची का पिछला पुनरीक्षण

पश्चिम बंगाल में आखिरी बार मतदाता सूची का व्यापक पुनरीक्षण 2002 में किया गया था। पिछले 22 वर्षों में सूची का ठीक से परीक्षण नहीं हुआ, जिससे मृतक और डुप्लीकेट नाम सूची में बने रहे। बिहार में 65 लाख से अधिक नाम हटाए जाने के बाद चुनाव आयोग ने संकेत दिया है कि पश्चिम बंगाल में भी SIR अभियान चलाया जा सकता है, हालांकि अभी इसकी समय-सीमा तय नहीं की गई है।

शोध रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े

अगस्त 2025 में प्रकाशित अध्ययन Electoral Roll Inflation in West Bengal: A Demographic Reconstruction of Legitimate Voter Counts (2024) में विद्यु शेखर और मिलन कुमार ने पश्चिम बंगाल की मतदाता सूची का विश्लेषण किया। रिपोर्ट के अनुसार, 2024 की मतदाता सूची में लगभग 1.04 करोड़ अतिरिक्त नाम दर्ज हैं, जो कुल सूची का करीब 13.69 प्रतिशत है। शोध में चेतावनी दी गई है कि यह आंकड़ा न्यूनतम है और वास्तविक संख्या इससे अधिक हो सकती है।

अध्ययन में बताया गया है कि बिहार की तरह यहां भी मृत व्यक्तियों के नाम मतदाता सूची में शामिल हैं। 2004 में राज्य में 4.74 करोड़ मतदाता थे। प्राकृतिक मृत्यु दर और उम्र के आधार पर अनुमान है कि इनमें से लगभग एक करोड़ लोग अब जीवित नहीं हैं, फिर भी उनके नाम सूची में बने हुए हैं।

वैध मतदाताओं की वास्तविक संख्या

1986 से 2006 के बीच जन्मे नए मतदाताओं और प्रवासन घटाने के बाद 2024 में पश्चिम बंगाल में वैध मतदाताओं की संख्या लगभग 6.57 करोड़ होनी चाहिए थी। लेकिन चुनाव आयोग की सूची में यह संख्या 7.61 करोड़ दर्ज है, यानी करीब 1.04 करोड़ नाम अतिरिक्त हैं। इस अंतर का चुनावी परिणामों पर प्रभाव पड़ सकता है।

अल्पसंख्यक इलाकों में असामान्य वृद्धि

अध्ययन में यह भी पाया गया कि अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में मतदाता संख्या असामान्य रूप से बढ़ी है। कई जगहों पर वास्तविक जनसंख्या से अधिक नाम दर्ज हैं। इसके अलावा, 2011 के बाद राज्य से हुए पलायन को सूची में शामिल नहीं किया गया, जबकि यह संख्या लगातार बढ़ रही है।

बिहार के अनुभव को देखते हुए अब पश्चिम बंगाल में भी आशंका है कि बड़े पैमाने पर नाम हटाए जा सकते हैं। इससे राजनीतिक दलों के बीच टकराव और बढ़ सकता है। विपक्ष इसे फर्जी वोटरों को बचाने की साजिश बताएगा, जबकि सत्तारूढ़ दल इसे लोकतंत्र की मजबूती और पारदर्शिता के लिए जरूरी कदम मान सकता है।

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