सीआरपीएफ के वाहनों को मजबूत बनाया गया

देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’, जिसकी तैनाती आतंक एवं नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में है, वहां पर खास तरह की बुलेटप्रूफ गाड़ियां उपलब्ध कराई जाएंगी। इसके अलावा बल के पास पहले से मौजूद वाहनों में भी बुलेट प्रूफ प्लेट लगवाई जा रही हैं। सीआरपीएफ मुख्यालय के सूत्रों का कहना है कि कश्मीर घाटी में बल के पास मौजूद अधिकांश वाहनों को बुलेट प्रूफ सिस्टम से लैस किया जा रहा है। ‘बुलेटप्रूफ’ वाहन पर ‘एके-47’ एवं दूसरे स्वचालित हथियारों से किए गए फायर का कोई असर नहीं होगा। जवानों को लगभग 50 बुलेट प्रूफ प्लेट वाली नई बसें मुहैया कराई जाएंगी। बल के लिए पर्याप्त संख्या में माइनिंग प्रोटेक्टेड व्हीकल ‘एमपीवी’ की खरीद प्रक्रिया शुरु की गई है। 

सीआरपीएफ मुख्यालय का प्रयास है कि बल के अधिकांश वाहन, जो ऑपरेशनल एरिया में लगे हैं, उन्हें फुल या मध्यम स्तर तक बुलेट-प्रतिरोधी कवच से लैस कर दिया जाए। इसकी वजह यह है कि कश्मीर, उत्तर पूर्व और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आतंकी हमले होते रहते हैं। सोमवार को श्रीनगर में आतंकियों ने जम्मू कश्मीर पुलिस की एक बस पर हमला कर दिया था। उसमें दो पुलिसकर्मी शहीद हो गए, जबकि दर्जनभर जवान घायल हुए थे। 

बाइक सवार आतंकियों ने ये हमला उस वक्त किया, जब पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी के बाद जेवन स्थित पुलिस मुख्यालय लौट रहे थे। पुलिसकर्मी जिस बस में सवार थे, वह बुलेटप्रूफ नहीं थी। इस हमले के बाद सीआरपीएफ ने अपने वाहनों को बुलेट-प्रतिरोधी कवच से लैस कराने की प्रकिया को तेज कर दिया है। बुधवार को मुख्यालय के सूत्रों ने बताया कि घाटी में पंद्रह सौ से ज्यादा वाहनों की समीक्षा की जा रही है। अधिकांश वाहनों में फुल बुलेट प्रूफ या सेमी बुलेट प्रूफ सिस्टम लगेगा। 

सूत्रों के अनुसार, बड़ी बसों में बुलेट प्रूफ प्लेट या शीशा लगाने से उसकी गति पर प्रभाव पड़ता है। वजह, बुलेट प्रूफ प्लेट या शीशे का वजन बहुत अधिक होता है। उस कारण वाहन अपनी निर्धारित स्पीड में नहीं चल पाता। अगर सामान्य बस की सभी सीटों पर जवान बैठे हैं तो उस स्थिति में वाहन को रफ्तार पकड़ने में दिक्कत आती है। इसी कारण से अब 54-57 जवानों के बैठने की क्षमता वाली मानक बसों की तुलना में 30 सीट वाली छोटी बसों को बुलेट-प्रतिरोधी कवच से लैस किया जा रहा है। मानक बसों की तुलना में मिनी बसों में बुलेट प्रूफ शीट लगाना आसान है। पुराने वाहन, जिनमें मीडियम स्तर की गाड़ियां शामिल हैं, उनमें बुलेटप्रूफ सिस्टम लगाया जाएगा। जब बड़ी संख्या में जवानों को इधर उधर जाना होता है तो बुलेट प्रूफ वाहनों का इस्तेमाल किया जाता है। इन वाहनों की खासियत यह है कि इन पर गन फायरिंग और एके सीरीज के हथियारों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।  

सीआरपीएफ एवं दूसरे केंद्रीय सुरक्षा बलों में खरीद प्रक्रिया धीमी चल रही है। बल के सूत्रों का कहना है कि इसके लिए केंद्र सरकार की नई टेंडर प्रक्रिया जिम्मेदार है। गाड़ी, हथियार या कोई अन्य उपकरण खरीदना है तो उसके लिए जो टेंडर प्रक्रिया शुरु होगी, उसमें ‘आत्मनिर्भर भारत’ का ध्यान रखा जाएगा। यानी वह प्रोडेक्ट अपने देश में बन रहा है तो पहले उसकी टेस्टिंग होगी। यदि वह प्रोडेक्ट बल के तय मानकों पर खरा उतरता है तो वहीं से उसे खरीदना पड़ेगा। बहुत से उपकरण ऐसे होते हैं कि स्थानीय स्तर पर उनकी डिलिवरी में कई वर्ष लग जाते हैं। ऐसे में बल के विविध अभियानों पर असर पड़ता है। सरकारी क्षेत्र से बाहर किसी दूसरी कंपनी को टेंडर देना आसान नहीं है। उसके लिए एक लंबी चौड़ी प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है। उसमें दर्जनों सवाल होते हैं। इन सबके चलते खरीद प्रक्रिया में देरी होती चली जाती है। एमपीवी खरीद के दौरान इस तरह के कई प्रावधान सामने आए थे। उसके चलते एक दशक में भी तय संख्या में एमपीवी नहीं खरीदे जा सके।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here