नई दिल्ली। चुनाव आयोग ने मतदाता सूची से नाम हटाने या जोड़ने की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और फर्जी आवेदन रोकने के लिए नया ई-वेरिफिकेशन सिस्टम शुरू किया है। अब यदि कोई व्यक्ति वोटर लिस्ट में बदलाव पर आपत्ति दर्ज करता है, तो उसके पंजीकृत मोबाइल नंबर पर ओटीपी भेजकर सत्यापन किया जाएगा।
आयोग के अधिकारियों के अनुसार, अब तक कई लोग आपत्ति दर्ज कराते समय किसी अन्य व्यक्ति का नाम और मोबाइल नंबर का उपयोग कर देते थे, जिससे गलत नाम हटाने जैसी गड़बड़ियां सामने आती थीं। नया सिस्टम इस दुरुपयोग को रोकने में मदद करेगा। आयोग का कहना है कि यह कदम किसी विशेष घटना के बाद नहीं, बल्कि पूरी प्रक्रिया को अधिक सुरक्षित और विश्वसनीय बनाने के लिए उठाया गया है।
कर्नाटक का मामला
अलंद विधानसभा क्षेत्र में वोटर लिस्ट से नाम हटाने के 6,018 आवेदन ऑनलाइन प्राप्त हुए थे, जिनमें से जांच के बाद केवल 24 ही सही पाए गए। शेष 5,994 आवेदन फर्जी निकले और खारिज कर दिए गए। आयोग ने स्पष्ट किया कि सिर्फ फॉर्म-7 भरने से नाम नहीं हटता, बल्कि हर आवेदन की गहन जांच और सत्यापन जरूरी है।
कांग्रेस का आरोप
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि आयोग ने कार्रवाई केवल तब की जब उन्होंने इस मुद्दे को उठाया। उन्होंने कहा कि वोट चोरी का मामला उनके द्वारा उजागर किए जाने के बाद ही चुनाव आयोग को यह कदम उठाने की याद आई। राहुल ने मुख्य चुनाव आयुक्त से यह भी सवाल किया कि वे अलंद मामले के सबूत कर्नाटक सीआईडी को कब सौंपेंगे।
आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग ने साफ किया है कि ई-वेरिफिकेशन फीचर का उद्देश्य केवल पारदर्शिता और गड़बड़ी रोकना है। आयोग का मानना है कि मोबाइल सत्यापन की बाध्यता से फर्जी आवेदन लगभग असंभव हो जाएंगे, जिससे राजनीतिक दलों के बीच विवाद भी कम होंगे।
चुनाव विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता बढ़ाने में अहम साबित होगा। हालांकि विपक्ष का तर्क है कि आयोग को हर मामले में पारदर्शिता बरतते हुए ठोस सबूत सार्वजनिक करने चाहिए।