स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने मां काली के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था: पीएम नरेंद्र मोदी

आज यानी रविवार को स्वामी आत्मस्थानंद की जन्म शताब्दी थी। इस दौरान पीएम मोदी ने विशेष कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होंने कई मसलों पर खुलकर अपनी बात रखी। यूं तो प्रधानमंत्री का पूरा भाषण धर्म, अध्यात्म और देश के विकास पर केंद्रित था, हालांकि इनमें तीन शब्द ऐसे थे, जिसकी चर्चा सबसे ज्यादा हो रही है। वे शब्द हैं मां काली, स्वामी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद।

पीएम मोदी ने तीन मिनट में आठ बार मां काली का जिक्र किया। आमतौर पर इन तीनों शब्दों का जिक्र होता रहता है, लेकिन इस बार इसके जिक्र होने का सियासी मायने ही कुछ और हैं। 

स्वामी आत्मस्थानंद के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। (फाइल फोटो)


पहले स्वामी आत्मस्थानंद को जान लीजिए, जिनकी जन्म शताब्दी पर यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। 1919 में बंगाल प्रेसीडेंसी के दिनाजपुर में जन्मे स्वामी आत्मस्थानंद भिक्षु थे। उन्होंने जनवरी 1938 में रामकृष्ण मिशन के तत्कालीन अध्यक्ष स्वामी विज्ञानानंद से आध्यात्मिक दीक्षा प्राप्त की थी। 

स्वामी आत्मस्थानंद

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तीन जनवरी 1941 को कोलकाता के बेलूर मठ के रामकृष्ण मिशन में शामिल हुए। यहां उन्होंने ब्रह्मचर्य का संकल्प लिया। संन्यास से पहले उनका नाम सत्यकृष्ण भट्टाचार्य था। वह सात भाइयों और तीन बहनों में सबसे बड़े थे। उनके दूसरे भाई ज्योतिकृष्ण भी स्वामी युक्तानंद के रूप में रामकृष्ण मिशन से जुड़ गए थे। बहन आरती भी संन्यासिनी बनीं। इसके अलावा दो अन्य भाई मानिंद कृष्ण, जो संन्यास के बाद कालीकृष्णानंद और सौरेंद्र कृष्ण गोपेशानंद बने। 

जब स्वामी आत्मस्थानंद बीमार थे तब प्रधानमंत्री मोदी उनसे मुलाकात करने पहुंचे थे। (फाइल फोटो)


स्वामी आत्मस्थानंद को 1973 में रामकृष्ण मिशन का ट्रस्टी बनाया गया। 1975 में वह सहायक सचिव बने। उस दौरान बड़े पैमाने पर मिशन का प्रसार भारत के साथ-साथ नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार में हुआ। 1992 में वह रामकृष्ण मिशन के महासचिव और 1997 में उपाध्यक्ष बनाए गए। तीन दिसंबर 2007 को उन्हें मिशन के 15वें अध्यक्ष के रूप में चुना गया। 17 जून 2017 को उन्होंने मिशन की सेवा करते हुए अंतिम सांस ली। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी


प्रधानमंत्री राम कृष्ण मिशन के बारे में बोल रहे थे। मिशन के कई संतों का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘स्वामी रामकृष्ण परमहंस ऐसे संत थे, जिन्होंने मां काली का स्पष्ट साक्षात्कार किया था। उन्होंने मां काली के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था। वह कहते थ कि ये सम्पूर्ण जगत, ये चर-अचर, सब कुछ मां की चेतना से व्याप्त है।’

प्रधानमंत्री यहीं नहीं रुके। आगे उन्होंने कहा, ‘यह चेतना बंगाल की काली पूजा में दिखती है। यही चेतना बंगाल और पूरे भारत की आस्था में दिखती है और जब आस्था इतनी पवित्र होती है तो शक्ति हमारा पथ प्रदर्शन करती है।’

फिर पीएम मोदी ने स्वामी विवेकानंद का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ‘इसी चेतना और शक्ति के एक पुंज को स्वामी विवेकानंद जैसे युग पुरुषों के रूप में स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने प्रदीप्त किया था। स्वामी विवेकानंद मां को काली की जो अनुभूति हुई, जो आध्यात्मिक दर्शन हुए उसने उनके भीतर असाधारण ऊर्जा और सामर्थय का संचार किया था। स्वामी विवेकानंद का ओजस्वी व्यक्तित्व, विराट चरित्र था… लेकिन मां काली की भक्ति में वह छोटे बच्चे की तरह हो जाते थे। भक्ति भी ऐसी ही निश्चलता और शक्ति की साधना साफ होती थी।’

प्रधानमंत्री ने स्वामी आत्मस्थानंद का नाम भी लिया। उन्होंने कहा, ‘ऐसा ही सामर्थ्य हमेशा पूज्य स्वामी आत्मस्थानंद के व्यक्तित्व में भी दिखता था। उनकी बातों में भी मां काली की चर्चा होती रहती थी। जब भी मेरा बेलूर मठ जाना हुआ। गंगा तट पर बैठकर और दूर मां काली का मंदिर दिखाई देता है। तो लगाव स्वाभाविक बन जाता था। जब आस्था इतनी पवित्र हो जाती है। तो शक्ति साक्षात हमारा पथ प्रदर्शन करती है। इसलिए मां काली का वो असीमित और असीम आशीर्वाद हमेशा भारत के साथ है। भारत इसी आध्यात्मिक ऊर्जा को लेकर आज विश्व कल्याण की भावना के साथ आगे बढ़ रहा है।’  


यह समझने के लिए हमने राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डॉ. अजय सिंह से संपर्क किया। उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने महज तीन मिनट में आठ बार मां काली का जिक्र किया। यह कोई संयोग नहीं है। अगर इसका सियासी मतलब निकाला जाए तो बहुत कुछ निकलता है।’ डॉ. अजय ने तीन बिंदुओं में इसे समझाया…

ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

1. ममता को घेरने की कोशिश : डॉ. अजय कहते हैं, ‘मौजूदा समय देशभर में मां काली के आपत्तिजनक पोस्टर और उसके बाद तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ का बयान चर्चा में है। महुआ ने मां काली को लेकर जो आपत्तिजनक टिप्पणी की उसको लेकर टीएमसी को सफाई देनी पड़ी। लेकिन ममता बनर्जी समझ नहीं पा रही हैं कि वह कैसे महुआ के बयान से किनारा करें? बंगाल में मां काली की सबसे ज्यादा पूजा होती है। ऐसे में उनके लिए तृणमूल कांग्रेस की सांसद का आपत्तिजनक बयान परेशान करने वाला है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री ने ये मुद्दा स्वामी आत्मस्थानंद की शताब्दी समारोह में उठाया, जिससे पश्चिम बंगाल के लोगों तक ये संदेश जाए कि टीएमसी मां काली का अपमान करती है, जबकि भाजपा मां काली की शक्ति से आगे बढ़ रही है। पीएम मोदी ने अप्रत्यक्ष तौर पर ममता बनर्जी पर निशाना साधा।’

पीएम मोदी के साथ ममता बनर्जी।

2. लोकसभा चुनाव में बनेगा मुद्दा : डॉ. अजय के मुताबिक, ‘प्रधानमंत्री का बार-बार मां काली का जिक्र करना और उनसे देश को जोड़ना यह साफ करता है कि आने वाले चुनावों में भाजपा इसे मुद्दा बनाएगी। खासतौर पर पश्चिम बंगाल में यह बड़ा मुद्दा होगा। 2024 में लोकसभा चुनाव है। भाजपा ने अभी से इसके लिए तैयारी शुरू कर दी है।’

वाराणसी में पीएम मोदी

3. पूरे देश को संदेश : मां काली विवाद पर प्रधानमंत्री ने सीधे तौर पर कुछ नहीं बोला। लेकिन उन्होंने मां काली की शक्ति और उनके महत्व के बारे में बताकर पूरे देश को संदेश दिया। उन्होंने लोगों को यह बताने की कोशिश की है कि मां काली उनके और राष्ट्र के लिए कितना मायने रखती हैं।

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