टैगोर विश्वगुरु, किसी प्रदेश तक सीमित नहीं हैं : तृणमूल

कोलकाता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गुजरात के साथ गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का संबंध बताए जाने के बाद राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस बिफरी हुई है। पार्टी ने प्रधानमंत्री के संबोधन पर आपत्ति जताते हुए कहा कि गुरुदेव टैगोर को किसी एक प्रदेश से जोड़ना ठीक नहीं वह पूरे देश के हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विश्व भारती विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में संबोधन के बाद तृणमूल नेता ब्रात्य बसु ने कहा कि टैगोर विश्वगुरु हैं, उन्हें एक विशेष प्रदेश से नहीं बांधा जा सकता है। इस तरह से बंगाल को छोटा दिखाने की कोशिश की जा रही है। 

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने गुरुवार को अपने संबोधन में कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई सत्येंद्र नाथ टैगोर (देश के पहले आईसीएस अफसर) की पत्नी ज्ञानंदनी देवी जब अहमदाबाद में रहती थीं तो उन्होंने देखा कि स्थानीय महिलाएं अपने साड़ी के पल्लू को दाहिने कंधे रखती थीं, इससे काम करने में दिक्कतें होती थीं। इस पर ज्ञानंदनी देवी ने ही आइडिया निकाला कि क्यों ना साड़ी के पल्लू को बाएं कंधे पर ही रखा जाए, कहते हैं बाएं कंधे पर पल्लू उन्हीं की देन है। इसी तरह एक दूसरे की मदद करके हम एक साथ परिवार की तरह रहकर देश की महान विभूतियों के सपनों को साकार कर सकते हैं।

इस पर बसु ने तृणमूल कार्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा, “पीएम नरेंद्र मोदी ने ज्ञानंदनी देवी का संपर्क गुजराती महिलाओं के साथ बताया, लेकिन उन्होंने पारसी महिलाओं के साथ उनका जिक्र नहीं किया, क्योंकि वह पारसी का नाम नहीं ले सकते. कवि गुरु रवींद्रनाथ टैगोर विश्व गुरु हैं। केवल गुजरात के साथ क्यों उन्हें जोड़ा जा रहा है? क्या यह बंगाल और गुरुदेव को छोटा करने की कोशिश नहीं है? ” बता दें कि सीएम ममता बनर्जी भाजपा नेताओं के बंगाल आने पर बार-बार कह रही हैं कि वह बंगाल को गुजरात बनने नहीं देंगी। 
 
ममता बनर्जी को नहीं किया गया आमंत्रित-
बसु ने कहा, “समारोह में सीएम ममता बनर्जी को आमंत्रित नहीं किया गया।” विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा आमंत्रण दिए जाने का पत्र जारी करने पर पूछे जाने पर बसु ने कहा, “क्या उस पत्र में बंगाल सरकार की रिसीविंग है? कुलपति खुद ही पत्र लिखकर और खुद ही जारी कर रहे हैं।” बसु ने कहा, “पीएम ने कई विश्वविद्यालयों के नाम लिए, लेकिन 1857 में कलकत्ता विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी। बंगाल में जादवपुर विश्वविद्यालय भी है, लेकिन उनका नाम नहीं लिया। उनके योगदान की चर्चा नहीं की।” 

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