उज्जैन में स्थित मंदिरो की जमीन अब दर्ज होगी मंदिरो के नाम

उज्जैन के सरकारी मंदिरों की अचल संपत्तियों के रिकॉर्ड से पंडे, पुजारी, पुरोहित के नाम हटाए जाएंगे। उज्जैन के लगभग 700 से अधिक मंदिरों के राजस्व रिकॉर्ड में बदलाव किए जाने की तैयारी है। इनमें उज्जैन के 84 महादेव मंदिरों सहित अन्य छोटे-बड़े मंदिर शामिल है। इससे मंदिरों की संपत्तियों को लेकर होने वाले आधिपत्य के विवादों पर विराम लग जाएगा।

उज्जैन कलेक्टर आशीष सिंह ने जिले के सभी एसडीएम व तहसीलदारों को निर्देश दिए हैं कि सरकारी मंदिरों की जमीन पर जहां भी पुजारियों के नाम दर्ज हैं, उन्हें हटाया जाए। यह जमीन अब सिर्फ मंदिरों के नाम होगी। खसरे में 12 नंबर कॉलम से भी पुजारी का नाम हटाया जाए। कलेक्टर ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिए हैं कि मन्दिरों की जमीन का नामांतरण पुजारियों के नाम से कहीं भी नहीं किया जाए।

मंदिरों की जमीन पर होते हैं विवाद
उज्जैन में कई सरकारी मंदिरों में वर्षों से सेवा कर रहे पंडे-पुजारी-पुरोहित के परिवार मंदिर और मंदिरों की अचल संपत्तियों पर अधिकार जमाने के लिए कोर्ट तक ले जाते हैं। उज्जैन मंदिरों का शहर है, जहां कम से कम 700 सरकारी मंदिर हैं, जिनका राजस्व रिकॉर्ड बदला जाएगा। इससे पहले भी कई मंदिरों को सरकार ने अपने नाम पर करवा लिया था। जिला प्रशासन उन मंदिरों के खसरे से पंडे-पुजारी के नाम हटाने  वाले हैं, जिनमें अब तक पुजारी परिवार के नाम चढ़े हैं। जिन मंदिरों और उनकी जमीनों पर पुजारियों के नाम हैं, जल्द ही उन मंदिरों के खसरे से पुजारियों के नाम हटा कर शासन-प्रशासन का नाम चढ़ाया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने की थी टिप्पणी
उज्जैन कलेक्टर की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से प्रेरित है। एक मंदिर के मालिकाना हक से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मंदिर के पुजारी को जमीन का मालिक नहीं माना जा सकता। देवता ही मंदिर से जुड़ी जमीन व संपत्ति के मालिक हैं। पुजारी किराएदार की तरह काम करता है। जो भी पुजारी होगा वह मंदिर का प्रबंधन करेगा। उसकी देखभाल करेगा। पुजारी किसी भी मंदिर की जमीन या सम्पत्ति का मालिक नहीं हो सकता। वह सिर्फ एक सेवक होता है।  

सरकार और पुजारियों के बीच है विवाद
मध्य प्रदेश के 1959 के सर्कुलर को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इसी मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सर्कुलर को बरकरार रखा है। इस सर्कुलर में पुजारियों के नाम भू राजस्व के रिकॉर्ड से हटाने के आदेश दिए गए थे, जिससे मंदिर की सम्पत्ति को अवैध रूप से बेचे जाने से बचा जा सके। उज्जैन जिले के कुछ सरकारी मंदिरों और उनकी संपत्ति पर सरकार व पुजारियों के बीच विवाद है। ऐसी ही स्थिति अन्य जिलों में भी सामने आने के बाद प्रदेश सरकार ने 1959 के सर्कुलर को लागू कर दिया था।  

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