सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन से जुड़े विवाद में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जारी अध्यादेश के तहत गठित नियुक्ति समिति को जल्द ही निलंबित किया जाएगा। यह समिति मंदिर के प्रबंधन के लिए बनाई गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अध्यादेश की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाने वाले याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालय का रुख करने का निर्देश दिया जाएगा। तब तक उक्त समिति का निलंबन रहेगा। मंदिर प्रशासन सुचारू रूप से चलाने के लिए कोर्ट एक नई समिति बनाएगा, जिसकी अध्यक्षता इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश करेंगे। इस समिति में सरकारी अधिकारियों के साथ-साथ मंदिर के पारंपरिक संरक्षक गोस्वामी वर्ग के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची शामिल हैं, ने यह भी कहा कि इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की सुनवाई पर रोक लगा दी गई है। साथ ही, उन्होंने मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया है कि संवैधानिक मामलों की सुनवाई के लिए इसे खंडपीठ को सौंपा जाए।
मामले का संक्षिप्त परिचय
बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर दो सेवायत संप्रदायों के बीच विवाद लंबित है। लगभग 360 सेवायत इस मंदिर के प्रबंधन में शामिल हैं, जो स्वामी हरिदास जी के गोस्वामी वंशजों द्वारा ऐतिहासिक रूप से संचालित होता रहा है।
15 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2023 के आदेश में संशोधन करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को मंदिर के आसपास पांच एकड़ भूमि अधिग्रहित करने की अनुमति दी थी। अधिग्रहित भूमि देवता के नाम पर पंजीकृत होगी और इसका उपयोग कॉरिडोर विकास के लिए किया जाएगा।
राज्य सरकार ने हाल ही में 2025 का अध्यादेश जारी किया, जिसका उद्देश्य मंदिर के बेहतर प्रशासन को सुनिश्चित करना है। इस अध्यादेश के तहत ‘श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास’ द्वारा मंदिर प्रबंधन और श्रद्धालुओं की सुविधाओं की देखरेख की जाएगी। न्यास में 11 सदस्य मनोनीत किए जाएंगे, जबकि अधिकतम 7 पदेन सदस्य होंगे।