नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने कहा है कि विरोधी आवाजों को दबाने के लिए आतंकवाद विरोधी कानून का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. अमेरिका और भारत (India- US) के बीच कानून संबंधों पर एक कार्यक्रम के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘आतंकवाद विरोधी कानून सहित आपराधिक कानूनों का नागरिकों के असंतोष या आवाज को दबाने के लिए दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए. मैंने अर्नब गोस्वामी बनाम राज्य में अपने फैसले में इसका जिक्र किया है कि हमारी अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नागरिकों की आजादी के लिए वे रक्षा की पहली पंक्ति बनी रहें.’
उन्होंने कहा, ‘एक दिन के लिए भी आजादी से वंचित करना बहुत गलत है. हमें हमेशा अपने फैसलों की गहराई में बसे सिस्टमेटिक इशूज के बारे में सतर्क रहना चाहिए.’ वह भारत-अमेरिका कानूनी संबंधों पर भारत-अमेरिका के संयुक्त सम्मेलन में बोल रहे थे. जस्टिस चंद्रचूड़ की यह टिप्पणी बीते दिनों फादर स्टेन स्वामी की हिरासत में निधन के बाद आई है. स्वामी के निधन के बाद अलग-अलग मानवाधिकार संगठनों ने सरकार और न्यायिक प्रणाली पर सवाल उठाए. इस मामले पर विदेश मंत्रालय ने भी स्पष्टीकरण जारी किया था.
हमारा संविधान मानव अधिकारों को समर्पित- चंद्रचू़ड़
संबोधन के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा- ‘भारत, सबसे पुराना और सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते, बहुसांस्कृतिक, बहुलवादी समाज के आदर्शों का प्रतिनिधित्व करता है. संविधान मानव अधिकारों के लिए प्रतिबद्ध है.’ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि, भारत और अमेरिका में शीर्ष अदालतों को ‘शक्तिशाली कोर्ट्स’ के तौर पर जाना जाता है.
उन्होंने कहा, ‘अमेरिका ने भारतीय संविधान के दिल और आत्मा में योगदान दिया है.’ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का फैसला उन्होंने अमेरिकी शीर्ष अदालत लॉरेंस वर्सेज टेक्सास के फैसले के आधार पर दिया था.
सोमवार को आयोजित कार्यक्रम के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने भारत-अमेरिका संबंधों पर कई अन्य टिप्पणियां कीं और कहा कि अमेरिका ‘स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक शांति को बढ़ावा देने का ध्वजवाहक है.’ यह कार्यक्रम अमेरिकन बार एसोसिएशन के इंटरनेशनल लॉ सेक्शन, चार्टर्ड इंस्टीट्यूट ऑफ आर्बिट्रेटर्स इंडिया और सोसाइटी ऑफ इंडियन लॉ फर्म्स (एसआईएलएफ) द्वारा आयोजित किया गया था.