थाईलैंड जैसे खूबसूरत देश में फ्लाइट के बजाय सड़क मार्ग के जरिए घूमने का सपना जल्द साकार हो सकता है। दरअसल, भारत-म्यांमार और थाईलैंड को जोड़ने वाला बहुप्रतीक्षित त्रिपक्षीय राजमार्ग अगले चार वर्षों में बनकर तैयार हो जाएगा। जानकारी के मुताबिक, राजमार्ग के भारतीय और थाईलैंड भागों पर अधिकांश काम पूरा हो गया है।
पहले जानते हैं भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग के बारे में
1360 किलोमीटर लंबा भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग भारत, म्यांमार और थाईलैंड की एक साझी पहल है। भारत, म्यांमार में त्रिपक्षीय राजमार्ग के दो खंडों का निर्माण कर रहा है। इसमें 120.74 किलोमीटर कलेवा-याग्यी सड़क खंड का निर्माण और 149.70 किलोमीटर तामू-क्यिगोन-कलेवा (टीकेके) सड़क खंड पर अप्रोच रोड के साथ 69 पुलों का निर्माण शामिल है। नवंबर 2017 में टीकेके खंड के लिए और मई 2018 में कलेवा-यज्ञी खंड के लिए काम दिया गया था। उस वक्त दोनों परियोजनाओं को पूरा करने का निर्धारित समय काम शुरू होने की तारीख से तीन साल तय किया गया था। इन दोनों परियोजनाओं को म्यांमार सरकार को अनुदान सहायता के तहत भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा है।
अभी क्यों चर्चा में है भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग?
हाल ही में कोलकाता में बिम्सटेक देशों (बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड) का दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया गया था। इसी सम्मेलन में भाग लेने वाले म्यांमार और थाईलैंड के मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों ने जानकारी दी कि इस सड़क परियोजना पर काम अगले तीन से चार वर्षों के भीतर पूरा किया जाएगा। राजमार्ग के भारतीय और थाईलैंड भागों पर अधिकांश काम पूरा हो गया है, जबकि म्यांमार में असामान्य परिस्थितियों की वजह से निर्माण अभी रुका हुआ है।
अभी परियोजना की स्थिति क्या है?
म्यांमार के वाणिज्य मंत्री आंग नाइंग ओ की मानें तो म्यांमार के अंदर राजमार्ग का अधिकांश भाग पूरा हो चुका है। मंत्री ने 2026 के अंत तक अधूरे हिस्सों को पूरा करने के साथ-साथ अपग्रेडेशन वाले हिस्सों को पूरा करने के लिए उम्मीद जताई है। उन्होंने कहा कि कलेवा और यार ग्यी के बीच राजमार्ग के 121.8 किलोमीटर के हिस्से को चार लेन के राजमार्ग में अपग्रेड किया जा रहा है और इसमें समय लग रहा है।
थाईलैंड के विदेश मामलों के उप मंत्री विजावत इसराभकदी ने बताया कि थाईलैंड-म्यांमार सीमा पर स्थित बैंकाक से मॅई सॉट तक राजमार्ग का थाईलैंड भाग लगभग पूरा हो चुका है। यह 501 किलोमीटर का हिस्सा लगभग तैयार है। यह एशियाई राजमार्ग-1 का भी हिस्सा है। मंत्री ने कहा कि अभी कुछ हिस्सों में हाईवे के शोल्डर को पक्का करने और किनारे और डिवाइडर पर पेड़ लगाने और फूलों की झाड़ियां लगाने जैसे छोटे-मोटे काम चल रहे हैं। यह सब बहुत जल्द खत्म हो जाएगा।
किन-किन स्थानों को कवर करेगा राजमार्ग?
त्रिपक्षीय राजमार्ग कोलकाता में शुरू होता है, उत्तर में सिलीगुड़ी तक जाता है और यहां से यह पूर्व की ओर मुड़ता है। आगे कूचबिहार होते हुए बंगाल से बाहर निकलेगा और श्रीरामपुर सीमा के माध्यम से असम में प्रवेश करेगा। इस दौरान उत्तर बंगाल का दोआर्स क्षेत्र भी कवर होगा। यह दीमापुर से नगालैंड में प्रवेश करने के लिए असम में पूर्व दिशा के क्षेत्रों को कवर करता है।
राजमार्ग फिर नगालैंड और मणिपुर के माध्यम से दक्षिण की ओर मुड़ता है। आगे इम्फाल से गुजरते हुए मोरेह के माध्यम से म्यांमार में प्रवेश करता है। मोरेह से, यह मॅई सॉट के माध्यम से थाईलैंड में प्रवेश करने के लिए मांडले, नैप्यीडॉ, बागो और म्यावाडी को पार करने के लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा को कवर करता है।
2002 में आया था प्रस्ताव
त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना को पहली बार अप्रैल 2002 में म्यांमार में भारत, म्यांमार और थाईलैंड की एक मंत्रिस्तरीय बैठक में प्रस्तावित और अनुमोदित किया गया था। प्रस्ताव को उस समय अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा पेश किया गया था। वाजपेयी ने भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ (आसियान) के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए परियोजना का प्रस्ताव रखा था। वाजपेयी ने प्रस्ताव दिया था कि राजमार्ग को अंततः कंबोडिया के माध्यम से वियतनाम और फिर लाओस तक बढ़ाया जा सकता है। बाद में परियोजना केवल कागजों पर ही रह गई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद इस पर काम शुरू हुआ।
भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग बनने से क्या बदलेगा?
भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना भारत की सबसे महत्वाकांक्षी ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ का एक हिस्सा है। यह भारत सरकार द्वारा शुरू की गई सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय राजमार्ग परियोजना है। इस परियोजना के पूरा होने के बाद उत्तर-पूर्वी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में सुधार होगा। इस परियोजना के पूरा होने के बाद, म्यांमार, थाईलैंड, हांगकांग और सिंगापुर सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र और अन्य एशियाई देशों के भीतर लोगों से लोगों की कनेक्टिविटी में सुधार होगा। यह अंततः भारत के पर्यटन क्षेत्र में सुधार करेगा।
सामरिक दृष्टिकोण से, विशेष रूप से चीन को ध्यान में रखते हुए, भारत के पड़ोसी देशों जैसे म्यांमार और थाईलैंड के साथ संबंधों को सुधारने में मदद मिलेगी। यह परियोजना पूर्वोत्तर क्षेत्र के भीतर कनेक्टिविटी में सुधार करेगी।