बढ़ रही मायावती के माथे पर चिंता की लकीरें, पश्चिमी यूपी में बसपा को एक के बाद एक झटके

उत्तर प्रदेश की सियासत में बसपा का सियासी आधार चुनाव दर चुनाव सिकुड़ता जा रहा है. लोकसभा चुनाव में जीरो पर सिमटने के बाद भी बसपा की मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही है. 2024 चुनाव में बिजनौर लोकसभा सीट से लड़ने वाले चौधरी विजेंद्र सिंह के बसपा छोड़ने के बाद अब सहारनपुर से लोकसभा सांसद रहे हाजी फजुरर्हमान ने गुरुवार को हाथी से उतरकर सपा की साइकिल पर सवार हो गए हैं. इस तरह पश्चिमी यूपी के इलाके से आने वाले दोनों दिग्गज नेताओं ने बसपा को अलविदा ऐसे समय किया है जब पार्टी अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है और उपचुनाव के जरिए दोबारा से उभरने की कवायद में है. ऐसे में बसपा के लिए सियासी चुनौती दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है?

सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है बसपा

बसपा अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है. मायावती का दलित वोटबैंक को अभी तक बीजेपी लुभाती रही है, लेकिन इस बार सपा और कांग्रेस के पाल में खड़ा नजर आया है. बसपा का गठन 1984 में कांशीराम ने किया. इसके बाद से दलित बसपा का मजबूत वोट बैंक बन गया, जिसके चलते मायावती यूपी के सत्ता पर कई बार विराजमान हुईं. 2007 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद से बसपा का सियासी ग्राफ गिरना शुरू हुआ तो फिर अभी तक रुका नहीं. 2024 के चुनाव में बसपा को यूपी में 9.39 फीसदी वोट मिला है, जो 1989 के चुनाव में मिले वोट शेयर के बराबर है. ऐसे में साफ है कि दलित वोटों का बड़ा हिस्सा छिटका है,जिसमें जाटव भी शामिल है.

उत्तर प्रदेश में घट रहा बसपा का जनाधार

उत्तर प्रदेश में घटते जनाधार और दलित वोट बैंक पर जंग के साथ ही बसपा के लिए और भी चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. पश्चिम यूपी की ज्यादातर सीटों पर बसपा के उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई. बिजनौर लोकसभा सीट से लोकसभा चुनाव में बसपा के प्रत्याशी रहे चौधरी विजेंद्र सिंह पश्चिमी यूपी में सबसे बेहकर चुनाव लड़े थे. वो भले ही तीसरे नंबर पर रहे, लेकिन 218986 वोट पाने में कामयाब रहे. ऐसे में विजेंद्र सिंह का बसपा के सभी पदों से इस्तीफा दे देना पार्टी के लिए झटका माना जा रहा है.

हाजी फजलुरर्हमान और चौधरी विजेंद्र सिंह ने छोड़ी बसपा

वहीं, सहारनपुर लोकसभा सीट से 2019 के चुनाव में बसपा सांसद चुने जाने वाली हाजी फजलुरर्हमान ने गुरुवार को पार्टी छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है. इस चुनाव में उन्होंने मैदान में उतरने से अपने कदम पीछे खींच लिए थे. हाजी फजलुर्रहमान सहारनपुर 2017 में बसपा के टिकट पर महापौर का चुनाव लड़े थे, लेकिन महज कुछ वोटों से हार गए थे. इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में सांसद बने, लेकिन अब पांच साल के बाद पार्टी छोड़ दी है. हाजी फजलुरर्हमान का मुस्लिमों के बीच अपना सियासी आधार है. काफी सरल स्वभाव के हैं और बड़े कारोबारी होने के चलते लोगों की आर्थिकरूप से मदद भी करते हैं. इसके चलते उनकी पकड़ ठीक-ठाक है.

यूपी में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव

यूपी में दस विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, जिसमें पश्चिमी यूपी की चार सीटें है. मुजफ्फरनगर की मीरापुर, मुरादाबाद की कुंदरकी, अलीगढ़ की खैर और गाजियाबाद विधानसभा सीट हैं, जिन पर उपचुनाव होने हैं. चौधरी विजेंद्र सिंह जिस बिजनौर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे, उसी के तहत मीरापुर विधानसभा सीट आती है. बसपा को मीरापुर सीट पर 55 हजार वोट मिले थे जबकि 2022 के चुनाव में पार्टी के उम्मीदवार को करीब 30 हजार वोट ही मिल सके थे. मीरापुर सीट पर एक लाख से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं और उसके बाद जाट मतदाता हैं. बसपा के दोनों छोड़ने वाले नेताओं में एक जाट समुदाय से हैं तो दूसरे मुस्लिम. ऐसे में बसपा के लिए सियासी चुनौती बढ़ गई है.

चंद्रशेखर आजाद के हौसले बुलंद

लोकसभा चुनाव जीतने के बाद से चंद्रशेखर आजाद के हौसले बुलंद हो गए हैं और अब वो अपनी पार्टी को पश्चिमी यूपी में विस्तार करने में जुटे है. ऐसे में बसपा के पास खुद मायावती ही इकलौता बड़ा चेहरा बची हैं. एक समय में बसपा के पास रहे कई बड़े चेहरे अब नहीं हैं. अब दोबारा से आकाश आनंद को चेहरे के तौर पर पेश किया गया तो कुछ उम्मीद बढ़ी थी, लेकिन अभी तक वो अपनी सक्रिय भूमिका में नहीं नजर आ रहे हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अब आगे बसपा की राह कितनी मुश्किल होगी?

हाजी फजलुरर्हमान और चौधरी विजेंद्र सिंह ने बसपा ऐसे समय छोड़ी है, जब बसपा उपचुनाव के जरिए दोबारा से उभरने की कवायद में है. नगीना लोकसभा सीट से चंद्रशेखर आजाद के सांसद चुने जाने के बाद दलित चेहरे के तौर पर पेश किया जा रहा है. उपचुनाव में चंद्रशेखर पूरे दमखम के साथ अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है, जिसके चलते पश्चिमी यूपी में बसपा के लिए सियासी चुनौती खड़ी हो गई है.

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