बिहार में इस जगह पानी के लिए तरस रहे लोग, पानी ढोने से होती है दिन की शुरुआत

बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में एक ऐसा गांव है। जहां साल भर लोगों के लिए पानी परेशानियों का सबब बना रहता है। ग्रामीणों के दिन की शुरुआत पानी ढोने से शुरू होती है और रात में खाने से पहले भी पानी ढोना पड़ता है। यह कहानी पश्चिमी चंपारण जिले के गौनाहा प्रखंड के पहाड़ की चोटी पर बसा भिखनाठोरी गांव की है।

जहां प्रतिदिन डेढ़ किलोमीटर की दूरी तय कर ग्रामीण नेपाल के ठोरी गांव से पीने का पानी लाते हैं। गांव से सटी पंडई नदी बहती है, जिसके पानी का उपयोग ग्रामीण अन्य दैनिक कार्यों में करते हैं। पिछले आठ वर्षों से यहां की आबादी यह समस्या झेल रही है। यहां पीने के पानी भरने के लिए छोटे-छोटे स्कूली बच्चे भी आते हैं और कोल्ड ड्रिंक्स की खाली बोतलों में पानी भरकर अपने घर को ले जाते हैं, जिससे उनकी दैनिक जरूरत पूरी होती है।

गौरतलब है कि इससे पहले प्रशासन नरकटियागंज से टैंकर के जरिए गांव में पानी की आपूर्ति करता था। अब उसे इसलिए बंद कर दिया गया है, क्योंकि पेयजल सुविधा मुहैया कराने के लिए लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (पीएचईडी) ने दो सोलर आधारित वाटर पंप लगवा दिए थे। उनमें से एक कुछ ही दिनों में बंद हो गया, जबकि दूसरे से लाल पानी आता है, जो उपयोग लायक है नहीं।

ग्रामीणों के सामने पहाड़ सी परेशानी
जानकारी के मुताबिक, नेपाल सीमा पर बसा पश्चिमी चंपारण जिले का अंतिम गांव भिखनाठोरी है। गौनाहा प्रखंड के पहाड़ी इलाके में बसे इस गांव के 200 घरों की तकरीबन 1,500 लोगों की आबादी की समस्याएं किसी पहाड़ से कम नहीं हैं। दिनचर्या पानी की चिंता से शुरू होती है। सुबह होते ही महिला और पुरुष पानी लेने नेपाल की ओर चल पड़ते हैं। रास्ते में पंडई नदी पड़ती है, जिसे पार कर वे नेपाल के ठोरी गांव पहुंचते हैं। यहां पहाड़ से पानी रिसता रहता है। सुविधा के लिए ग्रामीणों ने गढ्डे के बीच एक प्लास्टिक की पाइप डाल रखी है, जिससे पानी गिरता है। पानी लाने में ग्रामीणों का रोजाना डेढ़ से दो घंटे का समय जाया होता है। एक परिवार के दो सदस्य करीब 25-25 लीटर पानी लाते हैं।

‘नरक बन गई है हमारी जिंदगी’
भिखनाठोरी के ग्रामीणों ने बताया कि हमारी जिंदगी नरक बन गई है। विवशता में प्यास बुझाने के लिए ठोरी जाना पड़ता है। बरसात में पंडई में दो से ढाई फीट पानी होने से उसे पार करना मुश्किल होता है। तब इसके पानी का ही उपयोग पीने के लिए करना पड़ता है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से नुकसानदायक है। सीमावर्ती दोनों गावों में जब कभी किसी विवाद के कारण आवाजाही बंद होती है, तब भी नदी का पानी ही काम आता है।

उन्होंने बताया कि गांव में दो जगह सोलर आधारित वाटर पंप की व्यवस्था की गई थी। करीब आठ साल पहले प्रति सोलर वाटर पंप पर पीएचईडी ने 6.29 लाख रुपये खर्च किए। एक तो कुछ ही दिन बाद खराब हो गया और दूसरे से लाल पानी आता है। विभाग ने अब तक उसे बनवाने का कोई प्रयास नहीं किया। गांव में हैंडपंप और कुआं खोदने का प्रयास कुछ ग्रामीणों ने किया, लेकिन पहाड़ी क्षेत्र होने के चलते सफलता नहीं मिली।

भारत के अंतिम गांव के वासियों की अपनी जमीन भी नहीं
भिखनाठोरी गांव की आबादी-1,500, मतदाता-900, घरों की संख्या-206, उत्क्रमित मध्य विद्यालय-1 और उप स्वास्थ्य केंद्र-1 है। गौनाहा प्रखंड में नेपाल की सीमा पर भारत के अंतिम गांव के रूप में स्थापित भिखनाठोरी पौराणिकता और ऐतिहासिकता का संगम है। इस गांव के 206 घरों में बसने वाली करीब 1,500 लोगों की आबादी सन 1966 से वोटर है। राशन कार्ड पर राशन भी मिलता है। लेकिन इन्हें आज तक जमीन मुहैया नहीं कराई जा सकी। मतलब जिस जमीन पर ये लोग दशकों से रहते आ रहे हैं, वह इनकी अपनी नहीं है और सरकार ने अब तक बासगीत पर्चा भी नहीं दिया है।

क्या है भिखनाठोरी का इतिहास
भिखनाठोरी निवासी और धमौरा पंचायत के पूर्व मुखिया दयानंद सहनी ने बताया कि 2006 में विधानसभा में वन भूमि पर बसने बालों को बासगीत पर्चा दिए जाने का मुद्दा उठा था। फिर 2013 में भिखनाठोरी पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लोगों ने 179 घरों का दावा पत्र भी सौंपा। बावजूद पर्चा नहीं मिला।

उधर, रामनगर की रानी प्रेमा विक्रम शाह ने बताया कि भिखनाठोरी रामनगर राज की जमीन है। बाल्मीकिनगर के जटाशंकर तक पूरी फैली हुई है। कालांतर में वन भूमि पर वन विभाग ने अपना आधिपत्य जमा लिया। लेकिन जो भिखनाठोरी और अन्य गांव हैं, उस जमीन को रामनगर राज ने उन लोगों को दे दिया है। भिखनाठोरी में जो लोग बसे हैं, वह जमीन उन्हीं की है और रहेगी। रानी ने बताया कि चूंकि उस जमीन के कागजात उनके पास हैं, इसलिए वहां बसने वालों को कोई परेशानी नहीं है।

माता सीता और बौद्ध भिक्षुओं से भी है गांव का नाता
स्थानीय लोगों की मानें तो भिखनाठोरी में ही माता सीता को दूसरा वनवास के समय लक्ष्मण छोड़ गए थे। जो आज भी सीता खोला के नाम से पंडई की दो धाराओं के बीच मौजूद है। इसी स्थल को नेपाली पीएम ओली ने रामजन्म भूमि बताया था, जिस पर काफी बवाल मचा था।
दूसरी ओर यह स्थल कालांतर में बौद्ध भिक्षुओं का ठौर (ठिकाना) हुआ करता था। उन्हीं के नाम पर इस जगह का अपभ्रंश नाम भिखनाठोरी पड़ा। बताया जाता है कि चीन और जापान से बौद्ध भिक्षुओं का भारत में आने का यह सुगम मार्ग था और यहां उनका पड़ाव होता था। इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम ने भी भिखनाठोरी में पड़ाव डाला था। स्मृति के रूप में आज भी जॉर्ज पंचम का भवन खंडहर में तब्दील दिखता है।

पांडवों के नाम पर पड़ा गांव को बांटने वाली नदी का नाम
इसके इतर महाभारत काल में पांडवों से जुड़ी कई कहानियां भी इस क्षेत्र जुड़ी हैं। पांडवों के नाम पर ही भिखनाठोरी को दो भागों में बांटने वाली नदी पंडई पड़ा है। पहले यहां उप स्वास्थ्य केंद्र, पीडब्लूडी का कार्यालय, खुफिया एजेंसी का कार्यालय, चेकपोस्ट, रेलवे स्टेशन हुआ करता था। 1999 के पहले यहां बाजार का डाक होता था। पंडई से निकलने वाले पत्थर का भी डाक हुआ करता था। लेकिन अब यह सब इतिहास हो चुका है।

गौनाहा सीओ अमित कुमार के मुताबिक अनसर्वे लैंड और वन विभाग की भूमि होने के कारण भिखनाठोरी के लोगों को वहां का बासगीत का पर्चा नहीं दिया जा सकता है। सरकार से ही इस पर रोक लगी है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here