बिहार में करीब साढ़े चार महीने बाद, स्कूल में बच्चों का पहला दिन…25 फीसदी ही पहुंचे

बिहार में करीब साढ़े चार महीने बाद क्लास एक से लेकर 8 तक के स्कूल सोमवार से खुल गए हैं। एक लाख प्राथमिक और माध्‍यमिक विद्यालयों में पठन-पाठन शुरू हो गया। हालांकि, पहले दिन पेरेंट्स में कोरोना का काफी डर दिखा। कई स्‍कूलों में बच्‍चों की उपस्थिति न के बराबर है। खासतौर से प्राइवेट स्कूलों में तो बच्चों की स्थिति काफी कम दिखी।

वहीं, बच्चों का उत्साह देखते ही बना। दैनिक भास्कर ने नॉट्रेडेम स्कूल का जायजा लिया। वहां बच्चियां छुट्टी के समय झूला झूलती नजर आई। एक स्टूडेंट मरीना ने कहा- ‘स्कूल तो खुल गए हैं, हमें अजीब लग रहा है, नोट्स तो हमने बनाया नहीं है। कैंटीन बंद होने से बहुत दुख हो रहा है। ठंडा -ठंडा पानी भी पीने के लिए नहीं मिल रहा है। हमें फैसिलिटी दिलाइए’।

एक स्टूडेंट ने कहा- ‘बहुत दिनों बाद ऑफलाइन क्लास करने का मौका मिला। इसका हम लोग बहुत दिनों से इंतजार कर रहे थे। क्लास में साथ बैठकर पढ़ाई करने का अपना ही मजा है’। दूसरी स्टूडेंट ने कहा- ‘पूरा कोरोना काल बहुत मुश्किल से बीता है। बहुत डर और भय के साथ हम लोग घर में रहे। अब कोरोना कम हुआ है तो हम लोग स्कूल पहुंचे हैं’।

एक स्टूडेंट ने कहा- ‘कोरोना के कारण कैंटीन बंद है। यह अच्छी बात है। अगर कैंटीन खुलेगी तो कोरोना गाइडलाइन का पालन नहीं हो पाएगा। हमारे स्कूल में कोरोना गाइडलाइन का पूरी तरह से पालन हो रहा है। हम लोग घर से टिफिन भी ला रहे हैं’। जान्हवी नाम की स्टूडेंट ने बताया कि ऑनलाइन पढ़ाई करने से सिलेबस सही समय पर कंप्लीट नहीं हो पा रहा था और पढ़ाई में भी कई तरह की दिक्कतें आ रही थी। अब स्कूल आने से सब कुछ नॉर्मल हो जाएगा।

पेरेंट्स बोले- क्लास में फिजिकल उपस्थिति अच्छी

भास्कर ने कुछ पेरेंट्स से भी बात की। राजेश कुमार ने बताया- ‘स्कूल बंद थे तो स्कूल का कॉपरेशन अच्छा रहा। क्लास में फिजिकल उपस्थित होने से अच्छा रहता है। अभी भी बच्चे को स्कूल भेजने में रिस्क लग रहा है, लेकिन पढ़ाई भी जरूरी है। इसलिए इसको लेकर आए हैं’। पेरेंट्स अस्मिता मिश्रा ने बताया- ‘कोरोना काल में भी बेटी ने अच्छे से पढ़ाई की और अभी स्कूल शुरू हो गया तो स्कूल भी आना शुरू कर दिया है। स्कूल खुलने से यह हुआ कि बच्चों की एक्स्ट्रा एक्टिविटी शुरू हो गई, यह बहुत जरूरी है। काफी दिनों बाद स्कूल खुलने के बाद ज्यादातर पेरेंट्स बच्चे को खुद लेकर आए थे। कुछ ही बच्चे ऐसे थे जो पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आए। राजधानी के स्कूलों में मुश्किल से 25 परसेंट ही बच्चे पहले दिन स्कूल आए होंगे’।

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