हाथों में चूड़ी की जगह सेल्फ लोडिंग राइफल और पांवों में पायल की बजाए बूटों की धमक, बिहार की महिलाओं की यह नई पहचान है। पुरुषों के साथ कदम-ताल करते हुए राजगीर की पुलिस अकादमी में जब 596 महिला दारोगा एक साथ मैदान में आईं तो हर कोई यह नजारा देखकर दंग रह गया। लोग महिला दारोगा की जांबाजी वाले करतब देखकर हैरत में पड़े लोगों को सहसा अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।
बिहार में गुरुवार को महिला सशक्तीकरण की सबसे बड़ी मिसाल राजगीर में तब देखने को मिली जब बड़ी संख्या में महिलाएं ट्रेनिंग पूरी कर पुलिस अफसर बनीं। दिन-रात की पढ़ाई और लगन के बाद पहले तो इन्होंने दारोगा की परीक्षा पास की और कड़ी मेहनत के बाद ट्रेनिंग पूरी करनेवाली ये महिलाएं अब किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं। पुलिस अफसर की वर्दी में इनके हौसला भी बुलंद हैं।
ट्रेनिंग में दिखा चुके हैं फील्ड में साबित करेंगे
जहानाबाद जिले की रहनेवाली नेहा कहती हैं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं पर भरोसा किया और पुलिस जैसी कठिन नौकरी में हमें आरक्षण दिया। हम उनके भरोसे पर खरा उतरेंगे। ट्रेनिंग के बीच में हमलोगों ने 10 महीने तक फील्ड ड्यूटी की है। रात्रि गश्ती की, फ्लैग मार्च में शामिल रहे और चुनाव भी कराया। जो काम कोई और पुलिस अफसर कर सकता है, वह सारी जिम्मेदारियां हमने ट्रेनिंग के दौरान उठाई। भौतिकी से ऑनर्स करने के बाद पुलिस की नौकरी में आईं नेहा ने कहा, महिलाओं ने ट्रेनिंग के दौरान अपना दमखम दिखाया है, अब फील्ड में इसे साबित करेंगी।
महिलाएं आगे बढ़ेंगी तभी बिहार भी बढ़ेगा
भोजपुर की रहनेवाली शालू सिंह राजपूत को न सिर्फ यकीन है, बल्कि पूरा भरोसा है कि वह अपने कर्तव्य पर खरा उतरेंगी। गणित से ऑनर्स करने के बाद दारोगा बनीं शालू का मानना है कि ट्रेनिंग के दौरान उन्होंने खुद को मजबूत बनाया है और नई-नई जानकारियों से वाकिफ हुई हैं। कहती हैं महिलाओं की समस्याओं को सुलझाने पर विशेष ध्यान देंगी। साइबर क्राइम पर भी उन्होंने बहुत काम किया है। कहा, नीतीश कुमार ने महिलाओं पर जो भरोसा जताया है उसपर वह पूरी तरह खरा उतरेंगी। ऐसा ही कुछ कहना मधेपुरा की सुभी स्वराज का है। बीबीए करने के बाद दारोगा बनीं सुभी कहती हैं, महिलाएं आगे बढ़ेंगी तभी बिहार भी आगे बढ़ेगा।
सीआरपीएफ में रहते श्रीनगर में की ड्यूटी
कई महिला दारोगा ऐसी भी हैं जिन्होंने अफसर बनने से पहले सिपाही के तौर पर अपने दायित्वों को न सिर्फ निभाया है बल्कि श्रीनगर के मुश्किल हालात में ड्यूटी भी की। इन्हीं भी एक हैं नालंदा के एकंगरसराय की पूनम कुमारी। बिहार पुलिस में दारोगा बनने के पहले वह सीआरपीएफ में सिपाही के पद पर बहाल हुई थीं। इस दौरान उन्होंने श्रीनगर और दिल्ली हवाईअड्डा पर ड्यूटी की थी। कैमूर की पूजा भी पहले बिहार पुलिस में सिपाही थीं। जब वह सिपाही की ट्रेनिंग कर रही थीं, तभी उसका चयन दारोगा के लिए हो गया।
1996 में हो गई शादी पर नहीं छोड़ी वर्दी की चाह
सुपौल की रहनेवाली गीता कुमारी की कहानी हर उस शख्स के लिए प्रेरणा है, जो मामूली मुसिबतों में भी हार मान लेते हैं। 39 साल की गीता की शादी 1996 में हो गई थी। 21 साल की बेटी और 18 साल का उनका बेटा है पर उन्होंने स्टार वाली वर्दी की चाह नहीं छोड़ी। 9 साल तक पढ़ाई भी छूट गई पर हार नहीं मानी। दोबारा वर्ष 2009 से पढ़ाई शुरू की और ग्रेजुएशन पूरा करते हुए दारोगा की परीक्षा भी पास कर ली।
गीता की तरह आरती की दारोगा बनने की जद्दोजहद भी कुछ कम नहीं है। रोहतास की रहनेवाली आरती कुमारी की शादी वर्ष 2009 में हुई थी और उनकी बेटी प्राची की उम्र 10 साल की है। घेरलू काम को निपटाते हुए आरती ने दारोगा बनने के अपने सपनों को पूरा किया। कहती हैं उच्च प्रशिक्षण प्राप्त किया है हमने और हमारा काम भी वैसा ही होगा। गीता और आरती दोनों की तैनाती नक्सल प्रभावित औरंगाबाद जिले में हुई है।