बिहार में सत्तारूढ़ और विधानसभा में विधायकों के हिसाब से सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने जाति आधारित जन-गणना का लक्ष्य पहली बार खुलकर सामने लाया है। राजद के मुख्य प्रवक्ता मनोज झा ने रविवार को पटना में संवाददाता सम्मेलन कर साफ-साफ कहा कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर जो आरक्षण मिलना चाहिए था, वह एक बंदिश के कारण नहीं मिल सका था। आर्थिक आधार पर आरक्षण (EWS) को लेकर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद बंदिश रूपी वह लक्ष्मणरेखा खत्म हो चुकी है। अब 1931 की उस जातीय जनगणना की जगह जाति आधारित सर्वे जरूरी है। इसी से पिछड़ी जातियों को उनका वास्तविक हक मिलेगा। आरक्षण का दायरा बढ़ाना ही होगा। उन्होंने कहा कि जाति आधारित जन-गणना पर सुप्रीम कोर्ट में पूर्व सॉलिसिटर जनरल मुकुल रोहतगी को प्रधानमंत्री कार्यालय ने इसे ही रोकने के लिए उतारा। राजद के मुख्य प्रवक्ता ने 28 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में जातीय सर्वे / जाति आधारित जन-गणना से एक दिन पहले क्या कहा, जानिए- आगे पढ़ें उनके ही शब्दों में।
एक बहुत बड़ी आबादी को अब अपनी संख्या के अनुरुप आरक्षण चाहिए
राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा कि मंडल कमीशन की जब रिपोर्ट आई तो इसका आधार 1931 की जातिगत जनगणना को बनाया गया। इसके आधार पर मंडल कमीशन 52 प्रतिशत यानी 3743 को चिह्नित की गई। इसमें 27 फीसदी को आरक्षण दिया गया। क्योंकि 50 प्रतिशत को क्रॉस नहीं करना था। जब EWS आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी आई तो यह लक्ष्यण रेखा काफूर हो गई। यानी इससे 50 प्रतिशत की रेखा क्रॉस कर गई। एक बहुत बड़ी आबादी को अब अपनी संख्या के अनुरुप फैसले चाहिए। आरक्षण की व्यवस्था चाहिए। इसके लिए एक वैज्ञानिक समकालीन आंकड़ा चाहिए। इसके लिए बिहार से महागठबंधन सरकार ने पहल की। भाजपा ने इसका विरोध किया। लेकिन, इसके बावजूद यह काम पूरा हो गया। जातिगत जनगणना का कार्य पूरा हो गया।