प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं पर 9 सितंबर को सुनवाई

नई दिल्ली: ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 9 सितंबर को सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट में अश्विनी उपाध्याय की ओर से सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने मामले को उठाया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट के लिस्ट में 9 सितंबर को यह मामला लिस्टेड दिखाया जा रहा है। द्विवेदी ने कहा ‘सुप्रीम कोर्ट में दाखिल इस अर्जी पर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को नोटिस जारी किया था। लेकिन उसके बाद 6 बार मामला लिस्ट हुआ लेकिन डिलीट हो गया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से हमारी गुहार है कि इस बार जो लिस्ट की डेट दिखाई जा रही है उसे डिलीट न किया जाए और मामले की सुनवाई की जाए। तब सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए सहमति जताई।’

नई दिल्ली: ‘प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 9 सितंबर को सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट में अश्विनी उपाध्याय की ओर से सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने मामले को उठाया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट के लिस्ट में 9 सितंबर को यह मामला लिस्टेड दिखाया जा रहा है। द्विवेदी ने कहा ‘सुप्रीम कोर्ट में दाखिल इस अर्जी पर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को नोटिस जारी किया था। लेकिन उसके बाद 6 बार मामला लिस्ट हुआ लेकिन डिलीट हो गया। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट से हमारी गुहार है कि इस बार जो लिस्ट की डेट दिखाई जा रही है उसे डिलीट न किया जाए और मामले की सुनवाई की जाए। तब सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए सहमति जताई।’

एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने एक्ट के प्रावधानों को चुनौती दी
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की ओर से पहले इस मामले में याचिका दायर कर एक्ट के प्रावधानों को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की ओर से अर्जी दाखिल कर प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की धारा – 2, 3 और 4 को चुनौती दी गई है और उसे गैर संवैधानिक घोषित करने की गुहार लगाई गई है। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत प्रा‌वधान है कि 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस स्थिति में था और जिस समुदाय का था भविष्य में उसी का रहेगा।

जानिए याचिका में क्या कहा गया
याचिका में कहा गया है कि उक्त प्रा‌वधान संविधान के अनुच्छेद-14, 15, 21, 25, 26 व 29 का उल्लंघन करता है। संविधान के समानता का अधिकार, जीवन का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 दखल देता है। केंद्र सरकार ने अपने जूरिडिक्शन से बाहर जाकर ये कानून बनाया है। केंद्र ने हिंदुओं, सिख, जैन और बौद्ध के धार्मिक व पूजा स्थल के खिलाफ आक्रमणकारियों के अतिक्रमण के खिलाफ कानूनी उपचार को खत्म किया है। इन पूजा और धार्मिक स्थल पर आक्रमणकारियों ने अवैध व बर्बर तरीके से जो अतिक्रमण किया है उसे हटाने और अपने धार्मिक स्थल वापस पाने का कानूनी उपचार को बंद कर दिया गया है। इस बाबत जो कानून बनाया गया है वह गैर संवैधानिक है। केंद्र को ऐसा अधिकार नहीं है कि वह लोगों को कोर्ट जाने का रास्ता बंद कर दे। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का संवैधानिक अधिकार से किसी को वंचित नहीं किया जा सकता है।

मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद ने मांगी दलील की इजाजत
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रावधानों के संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका में मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद ने दखल याचिका दायर की हुई है और कहा है कि इस मामले में उन्हें दलील देने की इजाजत दी जाए। इस मामले में सबसे पहले याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से अर्जी दाखिल की गई थी और उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 12 मार्च 2021 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर रखा है।

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