केंद्र सरकार द्वारा तीनों विवादित कृषि कानून वापस लेने के फैसले को कृषि विशेषज्ञ अनिल घनवट ने दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के सदस्य घनवट ने कहा कि किसान 40 सालों से कृषि सुधारों की मांग कर रहे थे। कानून वापस लेना अच्छा कदम नहीं है। घनवट ने कहा कि मौजूदा कृषि प्रणाली उचित व पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा कि मैं सोचता हूं कि इस सरकार में कृषि सुधारों की इच्छाशक्ति है। पूर्ववर्ती सरकार में राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी। उम्मीद करता हूं कि तीनों कृषि कानूनों पर विचार के लिए सभी राज्यों के विपक्षी व किसान नेताओं को शामिल करते हुए एक और कमेटी बनाई जाएगी।
घनवट ने कहा कि विवादित कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट जारी करने के सवाल पर घनवट ने कहा कि वे कानूनी पहलुओं को देखकर फैसला करेंगे। उन्होंने दावा किया कि समिति के दो अन्य सदस्यों ने उन्हें फैसला करने का अधिकार दे दिया है। घनवट ने कहा कि समिति ने सोमवार को तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने के सरकार के निर्णय के संबंध में बैठक की। बैठक में हमने विस्तार से चर्चा की कि रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए या नहीं।
19 मार्च को सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी रिपोर्ट
समिति ने तीनों कृषि कानूनों का अध्ययन करने व उससे संबंधित पक्षकारों से परामर्श के बाद 19 मार्च को अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी थी। तब से यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है। घनवट ने 1 सितंबर को प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि वे इसे जनता के बीच जारी करें, इसकी सिफारिशों से मौजूदा किसान आंदोलन को खत्म कराने में मदद मिलेगी।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के दो अन्य सदस्य हैं कृषि लागत व मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी और कृषि अर्थविद प्रमोद कुमार जोशी। इन दोनों की टिप्पणी अभी प्राप्त नहीं हुई है। पीएम नरेंद्र मोदी ने लंबे किसान आंदोलन के बाद गुरु पर्व पर तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी है। संसद के शीत सत्र में इनसे संबंधित प्रस्ताव लाया जाएगा।