सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कोविड -19 पीड़ितों के परिवारों को अनुग्रह राशि (मुवावजा) के वितरण के लिए एक जांच समिति गठित करने को लेकर गुजरात सरकार को जमकर फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने पाया कि ऐसा करना उसके पूर्व आदेश को तोड़ने का प्रयास है। शीर्ष अदालत ने साथ ही केंद्र सरकार से कोविड मौतों के लिए अनुग्रह राशि वितरण के संबंध में विभिन्न राज्य सरकारों से डेटा लाकर रिकॉर्ड पर रखने के लिए कहा है। केंद्र को शिकायत निवारण समितियों के गठन के बारे में भी जानकारी देने के लिए कहा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने चार अक्टूबर को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की सिफारिश के अनुसार, कोविड पीड़ितों के परिजनों के लिए 50 हजार रुपए की अनुग्रह राशि को मंजूरी दी थी। यह आदेश वकील गौरव कुमार बंसल और अन्य की याचिका पर पारित किया गया था। गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ के समक्ष कहा कि शीर्ष अदालत के निर्देश के बाद एक संशोधित प्रस्ताव जारी किया गया है। 18 नवंबर को अदालत ने कहा था कि जांच समिति, निर्देशों को खत्म करने की कोशिश कर रही है।
सोमवार को मेहता ने स्वीकार किया कि संशोधित प्रस्ताव में कुछ बदलाव की जरूरत है। इस पर पीठ ने उनसे पूछा कि पहली अधिसूचना किसने पारित की? किसी को जिम्मेदारी लेनी चाहिए? जब मेहता ने इसकी जिम्मेदारी खुद लेने की बात कही तो पीठ ने कहा कि संबंधित अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। इस पर मेहता ने पीठ को बताया कि अतिरिक्त मुख्य सचिव वर्चुअल सुनवाई में शामिल हुए हैं। पीठ ने सचिव से पूछा कि यह किसने तैयार किया? किसने इसे मंजूरी दी? यह किसका दिमाग है?
वरिष्ठ अधिकारी ने जवाब दिया कि विभाग ने इसका ड्राफ्ट तैयार किया था। और अंत में सक्षम अथॉरिटी ने मंजूरी दे दी। तब पीठ ने स्पष्ट तौर पर पूछा कि सक्षम अथॉरिटी कौन है? उन्होंने कहा कि सक्षम अथॉरिटी मुख्यमंत्री हैं। पीठ ने कहा कि आपके मुख्यमंत्री कुछ भी नहीं जानते हैं? आप किस लिए हैं? यह आपके दिमाग की उपज तो नहीं है?
अदालत ने कहा कि यह मामले में देरी करने और गड़बड़ाने का एक नौकरशाही प्रयास है। मेहता ने मुआवजे के संबंध में कुछ फर्जी दावों का हवाला दिया। लेकिन पीठ लगातार गुजरात सरकार को फटकारती रही। पीठ ने कहा कि जांच समिति से प्रमाण पत्र प्राप्त करने में एक साल का समय लगेगा। अदालत ने कहा कि अगर फर्जी दावे हो तो यह वास्तविक लोगों के लिए बाधा नहीं बन सकता। मेहता ने अदालत को आश्वासन दिया कि अदालत की चिंताओं का समाधान किया जाएगा और प्रस्ताव में बदलाव किया जाएगा। अगली सुनवाई 29 नवंबर को होगी।