सुप्रीम कोर्ट ने ऋतु माहेश्वरी के इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जारी गैर-जमानती वारंट को 13 मई तक रोका

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नोएडा की सीईओ ऋतु माहेश्वरी को राहत देते हुए उनके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जारी गैर-जमानती वारंट पर 13 मई तक रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने यह वारंट जमीन अधिग्रहण के एक मामले में अदालत में पेश न होने के चलते अवमानना के तहत जारी किया था।

मामले की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की दो जजों एसए नजीर और कृष्णा मृदुल की एक पीठ ने इस मामले की सुनवाई 13 मई के लिए टाल दी क्योंकि एक जज ने मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। 

पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा, चूंकि यह मामला अर्जेंट है इसलिए चीफ जस्टिस के उचित निर्देश लेने के बाद इसमें शुक्रवार को फिर सुनवाई होगी। तब तक अंतरिम आदेश जारी रहेगा। पीठ ने कहा कि इस मामले की सुनवाई में कुछ परेशानी है इसलिए इसकी सुनवाई दूसरी पीठ करेगी। 

ऋतु माहेश्वरी के लिए पेश हुए वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत में कहा कि, यह एक जघन्य मामला है जहां एक महिला इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पेश हुई, उसका वकील मौजूद था और उसने पास ओवर मांगा। उच्च न्यायालय ने आदेश जारी कर उसे हिरासत में पेश होने को कहा।

वहीं दूसरे पक्ष ने माहेश्वरी को 13 मई तक राहत दिए जाने का विरोध किया और कहा कि ऋतु माहेश्वरी को राहत मिला तब गलत होगा जब खंडपीठ के दो में से एक जज मामले से खुद को अलग कर रहे हों।

सोमवार को इस मामले में अदालत ने इस मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि उत्तर प्रदेश के अधिकारियों की यह आदत पड़ गई है कि वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच रहे हैं और वह हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं कर रहे।

क्या है मामला

नोएडा के सेक्टर 82 में अथॉरिटी ने 30 नवंबर 1989 और 16 जून 1990 को अर्जेंसी क्लॉज के तहत भूमि अधिग्रहण किया गया था, जिसे जमीन की मालकिन मनोरमा कुच्छल ने चुनौती दी थी। वर्ष 1990 में मनोरमा की याचिकाओं पर हाईकोर्ट ने 19 दिसंबर 2016 को फैसला सुनाया था।

हाईकोर्ट ने अर्जेंसी क्लॉज के तहत किए गए भूमि अधिग्रहण को रद्द कर दिया था। मनोरमा कुच्छल को नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत सर्किल रेट से दोगुनी दरों पर मुआवजा देने का आदेश दिया था। इसके अलावा प्रत्येक याचिका पर पांच-पांच लाख रुपये के खर्च का भुगतान करने का आदेश प्राधिकरण को दिया था।

हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ नोएडा प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट में अथॉरिटी मुकदमा हार गई। इसके बावजूद हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया। इस पर अवमानना याचिका दाखिल हुई थी।

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