केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) पर भरोसे को लेकर राज्यों के दोहरे रवैये पर केंद्रीय कार्मिक मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने रविवार को बड़ा सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि राज्यों को स्पष्ट करना चाहिए कि उन्हें इस केंद्रीय जांच एजेंसी पर भरोसा है या नहीं? केंद्रीय मंत्री सिंह ने कहा कि राज्य एक और सीबीआई को दी गई जांच की आम सहमति वापस ले रहे हैं तो दूसरी ओर वे जनता के दबाव में चुनिंदा मामलों की जांच सीबीआई को ही सौंप रहे हैं। रविवार को सीबीआई के एक अलंकरण समारोह को संबोधित करते हुए कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्यमंत्री सिंह ने यह बात कही। इस मौके पर उन्होंने उत्कृष्ट सेवाओं के लिए 47 सीबीआई अधिकारियों को पुलिस मेडल प्रदान किए।
हाथरस कांड की जांच करने वाली सीमा पाहुजा को स्वर्ण पदक
समारोह में हाथरस सामूहिक दुष्कर्म और हिमाचल के गुडिया दुष्कर्म कांड की जांच करने वाली सीबीआई की डिप्टी एसपी सीमा पाहुजा को स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। कार्यक्रम में मुख्य सतर्कता आयुक्त सुरेश एन पटेल व कार्मिक सचिव प्रदीप कुमार त्रिपाठी भी मौजूद थे।
सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि राज्यों को यह स्पष्ट करना होगा कि वे सीबीआई पर भरोसा करते हैं या नहीं, या वे एजेंसी पर चुनिंदा रूप से भरोसा करते हैं, क्योंकि वे उन मामलों में चयनात्मक सहमति देना जारी रखते हैं, जो उनके लिए उपयुक्त हैं।
सीबीआई को नियंत्रित करने वाले दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के अनुसार, एजेंसी को राज्यों में काम करने के लिए वहां की सरकारों से सहमति की आवश्यकता होती है। इस सहमति की आवश्यकता तब नहीं होती है जब कोई मामला हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई को सौंपा जाता है।
केंद्रीय कार्मिक व लोक प्रशासन राज्यमंत्री ने राज्यों से अनुरोध किया कि वे सीबीआई को जांच के लिए दी गई आम सहमति वापस लेने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करें। यह इसलिए जरूरी है कि आम सहमति वापस लेने के बाद भी राज्य जनता के दबाव में जांच के लिए मामले सीबीआई को सौंप रहे हैं। इससे यह भी लगता है कि जनता को सीबीआई पर ज्यादा भरोसा है। इसी तरह जटिल व अर्जेंट मामलों को कई बार अदालतों द्वारा सीबीआई को सौंपा जाता है।