निकाय चुनाव में नामांकन प्रक्रिया संपन्न होने के महज अगले ही दिन कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। दो बार मुख्यमंत्री के खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ चुके पार्टी के जिला संयोजक तरलोचन सिंह और पूर्व जिलाध्यक्ष अशोक खुराना ने मंगलवार को अपनी टीम के साथ कांग्रेस को अलविदा कह दिया।
साथ ही दोनों ने पार्टी के नेताओं पर भी गंभीर आरोप जड़े। इससे कांग्रेस की अंदरूनी फूट और संगठन की कमी का असर खुलकर सामने आता दिखाई दिया। कल तक पार्टी के लिए वार्ड प्रत्याशी ढूंढने वाले इन नेताओं के अचानक पार्टी छोड़ने से शहर की राजनीति की आबोहवा ही बदल गई है।
मुख्यमंत्री नायब सैनी और भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली ने उन्हें घर जाकर भाजपा में शामिल किया। इसके बाद से कल तक कांग्रेस के लिए काम करने वाले दिग्गज अब भाजपा के लिए प्रचार करते दिखाई दिए।
इधर, कांग्रेस में धरातल पर हालात यह हैं कि मेयर व वार्ड प्रत्याशियों के चेहरे भी मायूस हैं। अचानक बदली तस्वीर से वे खुद हैरान हैं। कल तक उनके नामांकन कार्यक्रम में साथ दिखने वाले अचानक सुबह बगावत पर कैसे उतर आए, उनकी भी समझ में नहीं आ रहा है।
नामांकन के अंतिम दिन चार नए प्रत्याशी उतारे
विदित हो कि कांग्रेस की ओर से रविवार की शाम को करनाल निगम के 20 वार्डों में से 12 पर पार्षद उम्मीदवार घोषित किए गए थे। इसके बाद सोमवार को नामांकन के अंतिम दिन चार नए प्रत्याशी उतारे और चार को समर्थन का एलान किया था। इनमें से भी वार्ड-8 के प्रत्याशी टिकट मिलने के बाद लापता हो गया, जबकि वार्ड-20 के प्रत्याशी ने चुनाव लड़ने से ही किनारा करते हुए पार्टी को पहला झटका लगा।
अब पार्टी का चुनाव लड़वाने वाले एवं करनाल में कांग्रेस का चेहरा माने जाने वाले नेताओं का पार्टी को छोड़ने से निकाय चुनाव की तस्वीर बदलती नजर आ रही है। उधर, सीएम ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि आज करनाल कांग्रेस मुक्त हुआ है, जल्द प्रदेश भी कांग्रेस मुक्त हो जाएगा।
पूर्व सीएम से बात करके भी नहीं माने नेता
मंगलवार को सुबह नेताओं के जाने की सूचना पर पूरे दिन चुनाव समिति सदस्य दिव्यांशु बुद्धिराजा, मेयर प्रत्याशी मनोज वधवा ने घर जाकर उन्हें मनाने का प्रयास किया, लेकिन वे असफल रहे। यहां तक की उन्होंने पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और सांसद दीपेंद्र हुड्डा से भी फोन पर बात कराई, इसके बाद भी पार्टी छोड़ने वाले नेताओं का मूड़ नहीं बदल पाए। इसके बाद स्थानीय स्तर पर बैठकें करके चुनाव को आगे बढ़ाने की तैयारी की।
पंजाबी चेहरों के पार्टी छोड़ने से कांग्रेस को नुकसान
भाजपा की तर्ज पर कांग्रेस ने भी पंजाबी वोटरों को साधने के लिए इसी समाज के मनोज वधवा को मैदान में उतारा था। लेकिन इसी समाज के अशोक खुराना और तरलोचन सिंह के पार्टी छोड़ने से भी पार्टी को नुकसान हुआ है। अशोक स्वयं को प्रबल दावेदार मानते हुए बड़े नेताओं के आश्वासन पर नामांकन फार्म तक तैयार कर चुके थे। जबकि तरलोचन सिंह दो बार मुख्यमंत्री के सामने विस चुनाव लड़कर उन्हें टक्कर दे चुके हैं। ऐसे में इनका वोटबैंक भी इनके साथ ही कांग्रेस के हाथ से खिसक सकता है।
निकाय चुनाव समिति के संयोजक पंकज गाबा एवं पराग गाबा के भाई समाजसेवी प्रवेश गाबा ने भी भाजपा का दामन थामा है। जबकि पराग गाबा तरलोचन सिंह और अशोक खुराना को मनाने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन उनके घर में भी भाजपा ने सेंधमारी कर दी। प्रवेश गाबा ने कहा कि वे अब तक किसी भी राजनीतिक दल में नहीं थे। वे कभी अपने भाइयों के साथ भी कांग्रेस कार्यक्रमों में नहीं गए। उनका कहना है कि हर व्यक्ति की अपनी विचारधारा है। उनके समर्थक दीपक और शिव शर्मा ने भी 20 साल बाद कांग्रेस छोड़ी इसके पीछे उन्होंने संगठन न होना व गलत नीतियों को वजह बताया।
दोनों ने यह जड़े आरोप
34 साल की मेहनत के बाद भी काटा टिकट : अशोक खुराना
कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष अशोक खुराना ने कहा कि मेयर के टिकट के लिए बहुत समय से उनकी मांग थी। टिकट कटने से उनमें रोष था, समर्थकों से चर्चा के बाद उन्होंने 34 साल बाद कांग्रेस छोड़ने का एलान किया। उन्होंने बताया कि टिकट के लिए पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, प्रदेशाध्यक्ष उदयभान, पूर्व विधायक सुमिता सिंह और दिव्यांशु बुद्धिराजा के आश्वासन पर उन्होंने नामांकन संबंधित दस्तावेज भी तैयार किए हुए थे, लेकिन अंतिम समय में चार माह पहले कांग्रेस में आए मनोज को टिकट दी। उन्होंने कहा कि पार्टी ने उनकी मेहनत की कदर नहीं की।
कांग्रेस इंदिरा के समय की नहीं रही, मुझे ब्लैकमेल भी किया : तरलोचन
पूर्व संयोजक तरलोचन सिंह ने कहा कि कांग्रेस अब वो नहीं रही, जो इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय में थी। कांग्रेस में 45 साल के बाद भी वे वहीं खड़े हैं, जहां पहले थे। आरोप लगाया कि उपचुनाव में उन्हें हराने का प्रयास किया गया था। उन पर भाजपा से पांच करोड़ लेकर प्रचार न करने के भी आरोप कांग्रेस नेताओं ने लगाए थे। फिर भी वे सीएम के मुकाबले में 55 हजार वोट ले पाए थे। इसके बावजूद विस चुनाव में उन्हें मैदान में नहीं उतारा गया। बल्कि कांग्रेस नेताओं पर उनकी एक महिला के साथ वीडियो होने की बात करके ब्लैकमेल भी किया गया था। उन्होंने कहा कि प्रदेश नेतृत्व का मैं आज भी सम्मान करता हूं। दिव्यांशु बुद्धिराजा और मनोज वधवा से उनकी कोई नाराजगी नहीं है।
कांग्रेस नेताओं का पक्ष
भाजपा तोड़ रही कांग्रेस परिवार : वधवा
कांग्रेस प्रत्याशी मनोज वधवा ने कहा कि जिस तरह से भाजपा ने करनाल कांग्रेस के परिवार को तोड़ रही है। हमारे पार्षद उम्मीदवारों को, पार्टी के सीनियर नेताओं को प्रलोभन देने का काम कर रहे हैं। तरलोचन सिंह को न जाने क्या आश्वासन दिया गया है, जो उन्होंने पार्टी छोड़ने का निर्णय लिया है।
हमें नहीं पता क्या दबाव बनाया : बुद्धिराजा
कांग्रेस के निकाय चुनाव समिति सदस्य दिव्यांशु बुद्धिराजा ने कहा कि हमें विश्वास नहीं हुआ कि तरलोचन सिंह हमें छोड़ सकते हैं। किस प्रकार का उन पर दबाव है ये हमें नहीं पता। हमने मनाने का प्रयास किया, दो बार चुनाव लड़ाया, कांग्रेस ने उन्हें पद भी दिए इसके बावजूद वे हमें छोड़ गए। पता नहीं उनकी क्या मजबूरी रही होगी।