जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने कश्मीर घाटी की परिस्थितियों को देखते हुए गुरु बाजार से डलगेट तक मुहर्रम के जुलूस निकालने पर फैसला करने का अधिकार सरकार पर छोड़ते हुए कहा कि विशेष परिस्थितियों के कारण प्रशासन, सुरक्षा एजेंसियों और सबंधित पक्षों की राय महत्वपूर्ण होती है।
शहर के केंद्र में मुहर्रम के जुलूस निकालने की परंपरा 1989 से प्रतिबंधित है। अदालत ने निर्देश दिया कि सक्षम अधिकारी तीन दिन के अंदर इस पर फैसला लें।
श्रीनगर के शिया समुदाय के एक पंजीकृत ट्रस्ट ने अपने सचिव आगा सैयद मुजतबा अबास के माध्यम से एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें प्रदेश के अधिकारियों को शिया समुदाय को विशेष रूप से आठ अगस्त 2022 को गुरु बाजार से दलगेट तक धार्मिक जुलूस निकालने की अनुमति देने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। ट्रस्ट ने जुलूस के लिए आवश्यक सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश भी मांगे थे।मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्थल और न्यायमूर्ति वसीम सादिक नरगल की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि विशेष रूप से कश्मीर में धार्मिक जुलूस निकालना कानून-व्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करता है। पीठ ने कहा यह अदालत कानून-व्यवस्था की स्थिति के साथ-साथ इस तरह के धार्मिक जुलूस निकालने में राष्ट्र की सुरक्षा की भागीदारी का आकलन करने में असमर्थ है। सुरक्षा एजेंसियों और अन्य पक्षों को इस पर संज्ञान लेते हुए कानून-व्यवस्था की स्थिति, धार्मिक सद्भाव और राष्ट्र की सुरक्षा के आधार पर एक राय बनानी चाहिए।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने इस साल 25 जून को आयुक्त सचिव, गृह को इस संबंध में एक अभ्यावेदन दायर किया है। इस पर महाधिवक्ता डीसी रैना ने कहा कि आयुक्त सचिव अदालत द्वारा की गई टिप्पणियों के आलोक में विचार करेंगे। अदालत ने कहा, उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हम इस रिट याचिका का निपटारा आयुक्त सचिव, गृह या किसी अन्य सक्षम प्राधिकारी को निर्देश के साथ करते हैं कि याचिकाकर्ता के उपरोक्त अभ्यावेदन पर सबसे तेजी से तीन दिनों की अवधि के भीतर विचार किया जाए।