सिंधु जल समझौते पर पाकिस्तान को झटका लगा है। विश्व बैंक की ओर से नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ ने किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं पर भारत और पाकिस्तान के बीच कुछ विवादों को सुलझाने के लिए रूपरेखा पर भारत की स्थिति का समर्थन किया है।
तटस्थ विशेषज्ञ ने कहा कि दोनों पक्षों की दलीलों पर सावधानीपूर्वक विचार और विश्लेषण करने के बाद पाया कि उन्हें मतभेद के बिंदुओं के गुण-दोष के आधार पर निर्णय देने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। भारत दोनों देशों के बीच सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) के तहत तटस्थ विशेषज्ञों की ओर से विवाद के समाधान के लिए दबाव डाल रहा है, जबकि पाकिस्तान इसके समाधान के लिए हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय का समर्थन कर रहा है। पाकिस्तान ने 2015 में इस मामले में तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त करने की मांग की थी, लेकिन अगले ही साल उसने कहा कि उसकी आपत्तियों का निपटारा मध्यस्थता न्यायालय में होना चाहिए।
आपको बता दें कि 9 साल की बातचीत के बाद सितंबर, 1960 में भारत और पाकिस्तान ने आईडब्ल्यूटी पर हस्ताक्षर किए थे। इस संधि का एकमात्र उद्देश्य सीमा पार की नदियों से संबंधित मुद्दों का प्रबंधन करना था।
भारत ने किया स्वागत
भारत ने विश्व बैंक के तटस्थ विशेषज्ञ के फैसले का स्वागत किया है। विदेश मंत्रालय ने कहा, यह निर्णय भारत के इस रुख को बरकरार रखता है कि दोनों परियोजनाओं के संबंध में तटस्थ विशेषज्ञ को भेजे गए सभी सात प्रश्न संधि के तहत उसकी क्षमता के अंतर्गत आने वाले मतभेद हैं। भारत संधि की पवित्रता और अखंडता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है, इसलिए वह तटस्थ विशेषज्ञ प्रक्रिया में भाग लेना जारी रखेगा। ताकि मतभेदों को संधि के प्रावधानों के अनुरूप तरीके से हल किया जा सके, जो समानांतर कार्यवाही का प्रावधान नहीं करता है।