पंजाब: फिरोजपुर के सीमावर्ती क्षेत्रों में बना रहता है दहशत का माहौल

भारत-पाक के बीच 1965 और 1971 के युद्ध की दहशत आज भी फिरोजपुर में सीमा से सटे गांवों में दिखती है। पाकिस्तान की गोलियां चलते ही ग्रामीणों की सांसें अटक जाती हैं। कारगिल युद्ध व सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान सीमा पर पैदा हुए तनाव में कई बार बेघर हुए हैं यहां के ग्रामीण। इन गांवों में न डाकखाना है, न बैंक। विकास तो छोड़िए आज भी यहां के बाशिंदे मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। 

पाक के कसूर में बनी चमड़ा फैक्ट्रियों से सतलुज दरिया का पानी प्रदूषित होने से यहां के गांवों का भूजल जहरीला हो चुका है। वर्ल्ड बैंक की योजना के तहत वर्ष 2014 में गांव रहिमेके में एक वाटर वर्क्स लगा है। 22 सीमांत गांवों में पंद्रह हजार से ज्यादा की आबादी है। ग्रामीणों को हर माह पानी का बिल अस्सी रुपये देना पड़ता है, ये पानी पीने योग्य भी नहीं है। उक्त गांवों के लोगों को सरकारी परिवहन सुविधा तक नहीं है। यहां के नौजवानों को 12वीं करना वर्ष 2016 में नसीब हुआ है, जब सीमांत गांव गट्टी राजोके स्थित सरकारी स्कूल को सीनियर सेकेंडरी में बदला गया। सीमांत गांव भाने वाला, जल्लोके, गट्टी राजोके, चांदीवाला व ग्यारह पंचायतों के ग्रामीण कहते हैं कि बंटवारे के बाद पंजाब में अकाली-भाजपा गठबंधन व कांग्रेस ने राज किया लेकिन उनकी सुध नहीं ली है।

सीमावर्ती गांव भानेवाला निवासी तारा सिंह (46), हरबंस सिंह (42) व हंसा सिंह (30) ने बताया कि यहां के ज्यादातर लोगों के अनपढ़ रहने का एक मुख्य कारण ये है कि यहां वर्ष 1973 में सरकारी स्कूल स्थापित होना शुरू हुए। आज भी ग्यारह पंचायतों के 22 गांवों में लगभग 2021 परिवारों के बच्चों के लिए सात सरकारी प्राइमरी स्कूल, एक हाई स्कूल व एक सीनियर सेकेंडरी स्कूल है। इनमें भी अध्यापकों की भारी कमी है। कई ऐसे प्राइमरी स्कूल हैं, जहां एक या दो शिक्षक हैं। जब वो स्कूल नहीं आते तो बच्चे छुट्टी कर लेते हैं। इन गांवों में दस हजार से ज्यादा मतदाता हैं। फिर भी किसी नेता का इन गांवों में विकास की तरफ ध्यान नहीं है। बंटवारे के बाद वर्ष 1999 में उक्त गांवों को आपस में जोड़ने के लिए सड़क का निर्माण हुआ था और अब चुनाव के नजदीक 23 साल बाद सड़क की मरम्मत होने जा रही है।

परिवहन सुविधा तक नहीं

गांव जल्लोके निवासी गुरदेव सिंह का कहना है कि गांवों में सरकारी परिवहन व्यवस्था तक नहीं है। 22 गांवों में न तो डाकखाना है और न  बैंक। गांव टेंडी वाला, हजारा सिंह वाला, भखड़ा, गट्टी राजोके, गट्टी रहिमेके, चांदी वाला व खुंदर गट्टी में प्राइमरी स्कूल है, लेकिन शिक्षकों का अभाव है। खुंदर गट्टी में एक हाई स्कूल है और गट्टी राजोके में सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल है। 22 गांवों में सिर्फ पांच लोगों ने एमए पास किया है, इनमें सुरजीत सिंह, परमजीत सिंह, हरमेश सिंह, सुखविंदर कौर व रानो शामिल हैं। नौकरी किसी को नहीं मिली। तीस लोग बीए पास हैं। इस गांव में से न कोई डॉक्टर, न अधिकारी व न शिक्षक बना है।

प्रदूषित पानी से हो रहे त्वचा रोग

सुरजीत सिंह का कहना है कि उक्त गांवों के लिए एक डिस्पेंसरी है, स्टाफ भी लगभग पूरा है। कुछ माह से दवाइयां भी मिल रही हैं। गंभीर मरीज को फिरोजपुर सिविल अस्पताल रेफर किया जाता है। लेकिन यहां पर सरकारी लैब नहीं है, जिस कारण निजी लैब में महंगे टेस्ट कराने पड़ते हैं। यहां के लोग प्रदूषित पानी के चलते चमड़ी रोग, शूगर, दांत व हड्डियों की बीमारियों से ग्रस्त है। इस विधानसभा चुनाव में ही विधायक परमिंदर सिंह पिंकी नजर आया है। उक्त गांवों में एक लाइब्रेरी तक नहीं है, ताकि नौजवानों को पढ़ने-लिखने की सुविधा हो सके।

सीमा पर तनाव होते ही सहम जाते हैं ग्रामीण

गट्टी रहिमेके निवासी बलवीर सिंह (69) कहते हैं कि दोनों देशों के युद्ध के अलावा जब भी सीमा पर तनाव की स्थिति पैदा होती है, ग्रामीण सहम उठते हैं। वर्ष 1971 में पाकिस्तान ने दो दिसंबर शाम छह बजे धोखे से युद्ध कर दिया। यह चौदह दिन तक चला। इन गांवों के लोगों को अपना सामान उठाने का मौका तक नहीं मिला। कपड़े और पैसे लेकर किसी तरह नाव के जरिए दरिया पार कर सुरक्षित जगहों पर पहुंचे। 

इस युद्ध में पाक फौज ने उनके गांवों पर कब्जा कर लिया था। जब दोनों देशों का समझौता हुआ तो पाक फौज यहां से सभी पेड़, घरों की ईंटें व उनका सामान तक ले गई थी। यही नहीं शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव के बुत तक उखाड़कर ले गए थे। दोनों देशों के बीच बिछी रेल पटरी उखाड़ ली थी। सतलुज दरिया पर बना पुल न तोड़ते तो फिरोजपुर पर पाक फौज कब्जा कर लेती। यही हाल वर्ष 1965 के युद्ध में हुआ है। 

इसके बाद कारगिल, सर्जिकल स्ट्राइक के समय सीमा पर तनाव की स्थिति पैदा होने पर यहां के लोग घर से बेघर हुए हैं। इतना दुख यहां के लोगों ने झेला है, पर किसी राजनीतिक पार्टी ने उनके विकास के लिए नहीं सोचा। पंजाब में मालवा से 18 मुख्यमंत्री बने किसी ने भी पंजाब से सटी साढ़े पांच सौ किलोमीटर लंबी पट्टी भारत-पाक सरहद पर बसे गांवों के ग्रामीणों की कभी किसी ने खोज खबर नहीं ली है। आज भी उनके बच्चे रोजगार के लिए तरस रहे हैं। रोजगार मिल जाए तो नशे से भी नौजवानों को छुटकारा मिल सकता है। चुनाव के दौरान विभिन्न राजनीतिक पार्टी के नेता आते हैं और वादे कर वोट लेकर खिसक जाते हैं। बाद में कभी गांव में दिखते तक नहीं हैं।

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