राजस्थान में बिजली संकट बरकरार,उत्तर प्रदेश की बिजली सप्लाई पर पूरी तरह लगी रोक

बिजली संकट से निपटने के लिए राजस्थान सरकार ने पड़ोसी भाजपा शासित उत्तर प्रदेश को दी जा रही बिजली की सप्लाई को पूरी तरह रोक दिया है।

राजस्थान में बिजली संकट बरकरार है। कोयला कम पड़ गया है। सूरतगढ़ की कुछ यूनिट्स बंद हैं। महंगी बिजली खरीदी जा रही है। कुछ ऐसा ही है बिजली कंपनियों का हाल है। ऐसे में राज्य सरकार ने क्राइसिस मैनेजमेंट के लिए पड़ोसी यूपी और पंजाब को दी जा रही बिजली सप्लाई में कटौती की है।

मानसून की थोड़ी बारिश से खेती में उपयोग कम होने से सरकार को अचानक थोड़ी राहत जरूर दे दी है, लेकिन हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि केवल मामूली क्राइसिस मैनेजमेंट और डिमांड में आई कमी से परेशानी हल होती दिखाई नहीं दे रही है। बिजली कंपनियों का इंटरनल मैनेजमेंट तक गड़बड़ा गया है, जो सरकार के इस क्राइसिस मैनेमेंट से ठीक हो जाएगा, ऐसा लग नहीं रहा।

अघोषित कटौती और पड़ोसी राज्यों की रोक
बिजली संकट से निपटने के लिए राजस्थान सरकार ने पड़ोसी भाजपा शासित उत्तर प्रदेश को दी जा रही बिजली की सप्लाई को पूरी तरह रोक दिया है। कांग्रेस शासित पंजाब को दी जा रही बिजली सप्लाई भी रोकी गई है, लेकिन पूरी तरह नहीं। पंजाब को 200 मेगावाट में से 80 मेगावाट बिजली सप्लाई जारी है। उत्तर प्रदेश को दी जा रही 600 मेगावाट बिजली पर पूरी तरह रोक लगा दी है। गहलोत सरकार का दावा है कि इस फैसले से संकट दूर होगा, लेकिन जानकारों का कहना है कि यह संकट के बीच ऑल इज वेल जैसी तसल्ली है। हालात ये हैं कि ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं, कई शहरों तक में अघोषित बिजली कटौती में बढ़ोतरी हो गई है।

अगस्त महीना रहा बिजली सप्लाई के लिहाज से क्रूशियल
राजस्थान में अगस्त महीना बिजली की सप्लाई और बिजली की मांग के लिहाज से बेहद क्रूशियल रहा। दैनिक भास्कर ने 1 अगस्त से लेकर 31 अगस्त 2021 तक राजस्थान में इस्तेमाल हुई बिजली के आंकड़ों का गणित समझने की कोशिश की। इस गणित से दो बातें सामने आई हैं। एक- पड़ोसी राज्यों को दी जाने वाली बिजली को रोके जाने के बावजूद राज्य के ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में अघोषित बिजली कटौती जारी रही। पिछले दिनों के मुकाबले यह कटौती ज्यादा रही। अगस्त माह के शुरू के 20 दिन में 1115 लाख यूनिट बिजली का उपभोग ज्यादा किया गया।

यूं समझें बिजली का केलकुलेशन
1 अगस्त को राजस्थान में कुल 1984 लाख यूनिट इस्तेमाल की गई थी, जो लगातार बढ़ते हुए 19 अगस्त को 3099 लाख यूनिट पर पहुंच गई। यानी 1115 लाख यूनिट बिजली की एक्स्ट्रा खपत हो गई। फिर इस डिमांड में कुछ गिरावट रिकॉर्ड हुई। 31 अगस्त को महीना खत्म होने के दिन 2695 लाख यूनिट बिजली खर्च हुई। यानी पीक डिमांड 3099 के मुकाबले 404 लाख यूनिट बिजली कम इस्तेमाल हुई। अब ये बिजली कम इस्तेमाल हुई है या कम दी गई है, यह सवाल खड़े करती है। क्योंकि कई जिलों में गांव-ढाणियों में अघोषित रूप से बिजली चली जाती है। कई जगहों पर 2 से 4 घंटे तक बिजली नहीं आने की सूचना है। हालांकि जयपुर में ऊर्जा विकास निगम के चीफ इंजीनियर एमसी बंसल ने बताया कि उनके विभाग की ओर से राजस्थान में 30 और 31 अगस्त को बिजली की कटौती नहीं की गई है। लोड सेटिंग के लिए बिजली की कोई कटौती नहीं की गई है।

राजस्थान में अगस्त 2021 में इस्तेमाल हुई बिजली के आंकड़े

अगस्त माहबिजली खपत (लाख यूनिट में)
11984
22054
32078
42124
52217
62331
72347
82308
92442
102549
112649
122706
132780
142834
152797
162853
172977
183083
193099
202948
212800
222442
232531
242784
252891
262883
272741
282849
292994
302849
312695

मांग ज्यादा और प्रॉडक्शन कम, महंगी बिजली खरीदेंगे या करेंगे कटौती
राजस्थान में बिजली की मांग अभी ज्यादा है, लेकिन प्रोडक्शन कम हो पा रहा है। इसलिए महंगी रेट पर एक्सचेंज से बिजली की खरीदनी पड़ रही है। 18 से 20 रुपए तक की महंगे रेट पर भी बिजली की खरीदी राजस्थान में करनी पड़ी है। राजस्थान में सभी बिजली बनाने वाले प्लांट्स से 5970 मेगावॉट बिजली मौजूदा समय में पैदा हो रही है। इसके अलावा सोलर और विंड एनर्जी से मिलने वाली बिजली अलग है, लेकिन वह मौसम, तापमान, हवा के दबाव पर निर्भर करती है। राजस्थान में 13500 से 15000 मेगावाट बिजली की अभी रोजाना की मांग है। इसमें 17% की कमी है। ऐसे में जब तक कोयले की सप्लाई जरूरत के मुताबिक नहीं मिली तो महंगी बिजली खरीदकर काम चलाना पड़ेगा। इसका भार उत्पादन निगम खुद पेनल्टी के तौर पर भुगतेगा या बिजली इस्तेमाल करने वालों के बिल में रेट बढ़ाकर चार्ज किया जाएगा या सरकार इस घाटे को भुगतेगी यह चिन्ता की बात है। अगर महंगी बिजली नहीं खरीदी, तो बिजली की पूरी सप्लाई नहीं हो पाएगी। इससे बिजली कटौती के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है।

पावर प्लांट बिजली प्रोडक्शन (मेगावॉट में एफिकेसी)

अडानी- 617

बरसिंहसर- 105

छबड़ा (5 और 6 नम्बर यूनिट)- 552

छबड़ा (1,2,3,4 नम्बर यूनिट)- 902

केटीपीएस- 680

कालीसिन्ध- 520

राजवेस्ट- 717

रामगढ़- 207

एसटीपीएस- (7 नम्बर यूनिट) 451

एसटीपीएस- (8 नम्बर यूनिट) 600

आरएपीपी- (2 नम्बर यूनिट) 155

मारुति क्लीन कोल- 170

डीबी पावर- 122

सीजीपीएल- 172

एसकेएस- 100

ऊर्जा मंत्रालय ने दिए कोयले की सप्लाई बढ़ाने के आदेश
उत्पादन निगम लिमिटेड के बिजली घरों में कोयले की सप्लाई को लेकर पिछले दो दिनों से नई दिल्ली में ऊर्जा मंत्रालय में बैठकें हो रही हैं। 31 अगस्त को सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में कोल इंडिया लिमिटेड के नॉर्दन कोलफील्ड्स लिमिटेड- एनसीएल से कोटा थर्मल बिजली घर के लिए 4-5 कोल रैक रोजाना सप्लाई करने, साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड-एसईसीएल से उत्पादन निगम के कोटा और सूरतगढ़ बिजली घरों में 3 कोल रैक रोजाना सप्लाई के आदेश हुए। जिसके बाद 1 सितम्बर को भी कोयला मंत्रालय के जॉइंट सेक्रेट्री ने कोयले की सप्लाई के लिए बैठक की। जिसमें उत्पादन निगम के सीएमडी मौजूद रहे। बैठक में एनसीएल को कोटा और सूरतगढ़ बिजली घरों को 5 कोल रैक रोजाना और एसईसीएल को कोटा और सूरतगढ़ बिजली घरों को 3 कोल रैक रोज यानी उत्पादन को कोल इंडिया लिमिटेड से रोजाना 8 रैक कोयला सप्लाई करने के आदेश दिए हैं।

कोल इंडिया ने रोज 2000 मीट्रिक टन कोयले की सप्लाई पर दी सहमति
कोल इंडिया ने उत्पादन निगम को रेल-कम-रोड मोड से रोज़ाना लगभग 2000 मीट्रिक टन कोयले की सप्लाई देने के लिए सहमति दी है। उत्पादन निगम ने इसके लिए प्रोसेस भी शुरू कर दिया है। उत्पादन निगम के छबड़ा और कालीसिंध बिजली घरों के लिए पीकेसीएल से 9-10 रैक कोयले की रोजाना सप्लाई शुरू हो गई है, लेकिन बिजली कंपनियों को हालात पर लगातार निगरानी बनाए रखना होगा। जानकारों का कहना है कि सरकार क्राइसिस मैनेजमेंट के बजाय कंपनियों के इंटरनल मैनेजमेंट पर फोकस करेगी, जब ही इसका स्थाई हल निकल सकता है।

ये हैं हालात
सूरतगढ़ में 250-250 मेगावाट के 6 प्लांट अभी बन्द ही कर रखे हैं। जबकि कालीसिन्ध का भी एक 600 मेगावाट से ज्यादा क्षमता का सुपर क्रिटिकल पावर प्लांट बंद है। ऊर्जा विकास निगम का दावा है कि जब एक्सचेज में सस्ती बिजली मिल रही होती है, तब बिजली खरीद ली जाती है। सभी प्लांटों को नहीं चलाया जाता है, क्योंकि घरेलू बिजली डिमांड की पूर्ति हो जाती है। जब कोयले की अच्छी सप्लाई प्रदेश में हो रही होती है या एक्सचेंज में बिजली महंगी मिल रही होती है, तब सभी प्लांटों को चलाने की कोशिश की जाती है। जानकारों का यह भी कहना है कि इकाइयों को बंद करने का फैसला और बाहर से बिजली खरीदने का फैसला कोई बेहतर मैनेजमेंट का उदाहरण नहीं, बल्कि सरकार के मिस-मैनेजमेंट का उदाहरण है।

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