उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में जाति आधारित राजनीतिक रैलियों और सार्वजनिक जातिगत प्रदर्शन पर रोक लगाने का ऐलान किया है। सरकार का कहना है कि इस प्रकार की गतिविधियां “सार्वजनिक व्यवस्था” और “राष्ट्रीय एकता” के लिए खतरा हैं। इस आदेश के तहत जिलाधिकारियों, वरिष्ठ नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों को दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।
सरकार के इस कदम के बाद सियासत गर्मा गई है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पलटवार किया और सवाल उठाए कि हजारों साल से समाज में मौजूद जातिगत भेदभाव को कैसे खत्म किया जाएगा। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (ट्विटर) पर लिखा कि वस्त्र, प्रतीक चिन्ह और सामाजिक व्यवहार के माध्यम से जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए क्या उपाय किए जाएंगे। उन्होंने यह भी पूछा कि किसी के घर या परिवार को लेकर जातिगत भेदभाव की मानसिकता को समाप्त करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का आधार
सरकार का आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट के 16 सितंबर के फैसले पर आधारित है। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि पुलिस दस्तावेजों में जाति संबंधी जानकारी दर्ज करना बंद किया जाए, सिवाय उन मामलों के जहां अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कानूनी आवश्यकता हो। कोर्ट ने पुलिस द्वारा दिए गए तर्क की आलोचना करते हुए कहा कि यह समाज की जटिल वास्तविकताओं और पेशेवर पुलिसिंग की आवश्यकताओं से मेल नहीं खाता।
इस आदेश से राजनीतिक दलों में असंतोष देखा जा रहा है। समाजवादी पार्टी, बसपा, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, निषाद पार्टी और अपना दल जैसी पार्टियां लंबे समय से जाति आधारित रैलियां आयोजित करती रही हैं, ऐसे में इन पर नए निर्देश का सीधा असर पड़ सकता है।