इलाहाबाद। प्रदेश के 558 अनुदानित मदरसों की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) द्वारा चल रही जांच अब नहीं होगी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार को केंद्रीय मानवाधिकार आयोग के आदेश पर शुरू हुई जांच को रोक दिया। कोर्ट ने मदरसों की जांच आयोग के अधिकार क्षेत्र से बाहर बताते हुए इसे अवैध करार दिया।
मामला बाराबंकी निवासी मोहम्मद तलहा अंसारी की शिकायत से शुरू हुआ था। आयोग के निर्देश पर शासन ने ईओडब्ल्यू को जांच का आदेश दिया था। इसके खिलाफ मदरसों की शिक्षक संघ ‘मदारिस अरबिया उत्तर प्रदेश’ और प्रबंध समिति ‘मदरसा मदीनतुल उलूम जलालीपुर बनारस’ ने याचिका दाखिल की थी।
याचिका में कहा गया था कि आयोग के पास मदरसों की नियुक्तियों और वित्तीय मामलों की जांच का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने एसोसिएशन के वकीलों के तर्कों से सहमति जताते हुए कहा कि आयोग कोई सेवा न्यायाधिकरण नहीं है और मदरसों के मामले इसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता आदतन शिकायतकर्ता हैं, जबकि पीड़ित व्यक्ति नहीं है।
इस आदेश से सबसे बड़ी राहत कामिल और फाजिल डिग्री धारक शिक्षकों को मिली है। केंद्रीय मानवाधिकार आयोग ने इन शिक्षकों के वेतन भुगतान को वित्तीय भ्रष्टाचार मानते हुए रोक लगाने का आदेश दिया था, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इन डिग्रियों को असंवैधानिक घोषित किया था। हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब 558 अनुदानित मदरसों में कार्यरत शिक्षकों को जांच और वेतन रोक से राहत मिल गई है।
संगठन के महासचिव दीवान साहब जमां ने कहा कि आयोग ने एक ही व्यक्ति की ओर से 55 शिकायतें की थीं, जिससे मदरसों के लोगों में डर का माहौल बन गया था। कोर्ट के आदेश से यह डर अब समाप्त हुआ है और मदरसों को कानूनी सुरक्षा मिली है।