रामलला की मूर्ति को बनाने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज ने भगवान राम की एक अनदेखी तस्वीर जारी की है, जिसे सोशल मीडिया पर खूब सराहा जा रहा है। यह तस्वीर तब की है, जब वे रामलला की मूर्ति को गढ़ रहे थे। योगीराज ने तस्वीर साझा करते हुए लिखा, मूर्ति तराशते समय। उन्होंने आगे कहा कि सभी बारीकियों को ध्यान में मूर्ति तराशते हुए मैं आश्वस्त था कि अंतिम समय में बड़ा बदलाव आ जाएगा। साझा की गई फोटो में योगीराज भी नजर आ रहे हैं, जिनके हाथ में कोई उपकरण है। फोटो में योगीराज ने रामलला की ठुड्डी पकड़ी हुई है।
सोशल मीडिया पर हुई खूब सराहना
योगीराज ने सोशल मीडिया पर फोटो साझा की तो लोगों ने पोस्ट को खूब सराहा। पोस्ट साझा करने के एक घंटे के अंदर ही 25 हजार लोगों ने फोटो लाइक कर दी। फोटो को खूब शेयर किया गया। लोगों ने खूब कमेंट भी किए। एक यूजर ने कमेंट में कहा कि बहुत बढ़िया काम है। आप पर बहुत गर्व है। दूसरे यूजर ने कहा कि यह बहुत सुंदर है। वहीं, तीसरे यूजर ने कहा कि बहुत शानदार काम।
रामलला के मूर्ति की खासियत
- मूर्ति में बाल सुलभ कोमलता, भुजाएं घुटनों तक
- रामलला की मूर्ति श्याम शिला से बनी है। इसकी आयु हजारों साल होती है, यह जलरोधी है।
- चंदन, रोली लगाने से मूर्ति की चमक प्रभावित नहीं होगी।
- पैर की अंगुली से ललाट तक मूर्ति की ऊंचाई 51 इंच है।
- मूर्ति का वजन 150 से 200 किलो है, मूर्ति के ऊपर मुकुट व आभामंडल होगा, श्रीराम की भुजाएं घुटनों तक लंबी हैं।
- मस्तक सुंदर, आंखें बड़ी और ललाट भव्य है।
- कमल दल पर खड़ी मुद्रा में मूर्ति, हाथ में तीर व धनुष होगा।
- मूर्ति में पांच साल के बच्चे की बाल सुलभ कोमलता झलकेगी।
कौन है अरुण योगीराज?
अरुण योगीराज मैसूर महल के प्रसिद्ध मूर्तिकारों के परिवार से हैं। वह अपने परिवार की पांचवी पीढ़ी के मूर्तिकार हैं। उनके पिता योगीराज शिल्पी भी एक बेहतरीन मूर्तिकार हैं और दादा बसवन्ना शिल्पी को मैसूर के राजा का संरक्षण हासिल था। अरुण को बचपन से ही मूर्ति बनाने का शौक था। हालांकि एमबीए करने के बाद वह प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगे, लेकिन मूर्तिकला को नहीं भूल पाए। आखिरकार साल 2008 में नौकरी छोड़ मूर्तिकला में कॅरिअर बनाने उतर पड़े। फैसला कठिन था, मगर सफल रहा। आज वह देश के जाने-माने मूर्तिकार हैं। उनके परिवार में एक से बढ़कर एक मूर्तिकार रहे हैं। उनकी पांच पीढ़ियां मूर्ति बनाने या तराशने का काम कर रही हैं। अरुण के दादा बसवन्ना शिल्पी भी जाने-माने मूर्तिकार थे। उन्हें मैसूरू के राजा का संरक्षण हासिल था।