मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में एक दशक बाद सत्ता में लौटने के लिए बेकरार है। लिहाजा पार्टी चुनाव जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। पार्टी अपनी पिछली कई गलतियों से सबक लेते हुए इस बार एक नए दृष्टिकोण के साथ चुनाव मैदान में उतरी है। जहां उसके केंद्र में युवा और महिलाएं हैं। सोशल मीडिया पर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने की कवायद करने के साथ उनकी नजर पार्टी की छवि बदलने पर भी है।
इस चुनाव में बसपा के रूप बदलने की चर्चा हर तरफ हो रही है। इन पांच बिंदुओं में समझते हैं कि 2022 में होने वाले चुनाव के लिए बसपा ने अपनी रणनीति में क्या अहम बदलाव किए हैं।
‘सर्व धर्म सम भाव’
इस बार मायावती की पार्टी ने राज्य में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। पार्टी दलित-ब्राह्मण सामाजिक इंजीनियरिंग से आगे जाकर खुद को ‘सर्व धर्म सम भाव’ (सभी धर्मों को समान समझने) की पार्टी के रूप में पेश कर रही है। भाजपा से नाराज माने जाने वाले ब्राह्रमणों के लिए नरम हिंदुत्व का रुख अपनाते हुए ब्राह्मणवाद की राह पर चल रही है। पार्टी राज्य भर में प्रबुद्ध सम्मेलनों का आयोजन कर रही है तो वहीं अपने कोर वोट बैंक दलितो को भी साधने में लगी है।
सूत्रों के मुताबिक बसपा ओबीसी और ब्राह्मणों को टिकट बंटवारे में तवज्जो देने पर विचार कर रही है। इसलिए बसपा ब्राह्मणों को उम्मीदवार बनाकर 2022 विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट बैंक में सेंधमारी करना चाह रही है। इसके बाद वह अपने आधार वोटबैंक दलित और मुस्लिम को टिकट देने की रणनीति अपना रही है।