यूपी में बिजली के निजीकरण का मामला पीएमओ भेजा गया, सीबीआई जांच कराने की मांग

पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल बिजली निगम को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल में चलाने की तैयारी का मामला प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) पहुंच गया है। उपभोक्ता परिषद ने पत्र भेजकर आरोप लगाया है कि पावर कॉर्पोरेशन प्रबंधन ने दोनों निगमों में केंद्र सरकार से रिवैम्प्ड डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम (आरडीएसएस) में करीब 20415 करोड़ रुपया खर्च कर दिए।

अब इन दोनों निगमों को निजी हाथों में देने की तैयारी है। ऐसे में पूरे मामले की सीबीआई जांच कराई जाए, ताकि गलत तरीके से रणनीति बनाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो सके। वहीं, उपभोक्ता परिषद सोमवार को विद्युत नियामक आयोग में याचिका भी दाखिल करेगा।

परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने पीएम नरेंद्र मोदी को भेजे पत्र में पावर कॉर्पोरेशन की ओर से उपभोक्ताओं के हितों की अनदेखी का आरोप लगाया है। विभिन्न तथ्यों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया है कि दोनों निगमों में आरडीएसएस योजना के तहत लॉस रिडक्शन व स्मार्ट प्रीपेड मीटर योजना में 20415 करोड़ रुपये खर्च करके इन्हें आत्मनिर्भर बनाने का दावा किया गया है।

इसमें 60 प्रतिशत केंद्र सरकार और 40 प्रतिशत राशि राज्य सरकार खर्च कर रही है। विद्युत नियामक आयोग में इस योजना के अनुमोदन में स्पष्ट रूप से लिखा है कि यह निगमों को आत्मनिर्भर बनाने की स्कीम है। इसका भार उपभोक्ताओं पर नहीं पड़ेगा। उन्होंने सवाल उठाया है कि इतनी बड़ी रकम खर्च करने के बाद अब पीपीपी मॉडल पर निजी हाथों में देकर किसे आत्मनिर्भर बनाया जाएगा?

करोड़ों हो चुके हैं खर्च

उपभोक्ता परिषद ने पूरे मामले का खुलासा करते हुए लिखा है कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर के क्लस्टर में तीन पूर्वांचल और दो दक्षिणांचल में बनाए गए। अब इसी आधार पर निजीकरण का मसौदा तैयार किया गया है। लॉस रिडक्शन में पूर्वांचल में करीब 4519 करोड़ और दक्षिणांचल में 3798 करोड़ का टेंडर अवॉर्ड किया गया।

इसमें 8317 करोड़ खर्च हो चुका है। स्मार्ट प्रीपेड मीटर में दक्षिणांचल में 4947 करोड़ और पूर्वांचल में 7151 करोड़ का टेंडर अवॉर्ड किया गया जिसमें 12098 करोड़ खर्च किया जा रहा है। इतनी बड़ी रकम खर्च करने के बाद इसे निजी हाथों में देकर संबंधित कंपनी को उपकृत करने की चाल है। इसलिए पूरे मामले की सीबीआई जांच कराई जाए।

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